
ईंटा भट्ठा के चिमनियों से धूमिल होता जा रहा 'मिनी लंदन'
| | 7 April 2018 5:19 AM GMT
डकरा/खलारी : मार्च मिनी लंदन के नाम से मशहूर मकलुस्ककिगंज इन दिनों अपनी बदहाली पर आंसू वह रहा...
डकरा/खलारी : मार्च मिनी लंदन के नाम से मशहूर मकलुस्ककिगंज इन दिनों अपनी बदहाली पर आंसू वह रहा है।जिसकु पहचान स्वच्छ वतावरण के रूप मेंजाना जाता था ।आज पूरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है।कारण खलारी और मकलुस्ककिगंज में चल रहे अबैध ईटा भठा के चिमनी से निकलने वाले प्रदुषित धुँवा।यँहा के हवा में जहर घोल रही है।
झारखंड की राजधानी रांची से उत्तर-पश्चिम में करीब 60-किलोमीटर की दूरी में बसा मिनिलदान के मसूर मकलुस्ककिगंज इन दिनों प्रदूषन कि मार झेल रहा।कारण यँहा के दर्जनों ईटा भठो से निकलती धुँआ से पूरा पर्यावरण दूषित होता जा रहा है।1933 में कोलोनाइजेशन सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा बसाया गया मैकलुस्कीगंज देखते ही देखते 'मिनी लंदन' के रूप मे विख्यात हो गया लेकिन आज भारत के एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए बुना यह खूबसूरत घोंसला तिनके-तिनके बिखर रहा है। समय के साथ तालमेल नहीं बिठा पाने के संकेत यहां के रिहाइश, राह और राहगीर सब पर नजर आते हैं।पिछले कुछ दशकों में यहां के हालात लगातार खराब हुए पर फिर भी आशा की झिलमिलाती किरणें छिटपुट दिखती रहीं। जीर्ण-शीर्ण घरों, डॉक्टर विहीन चिकित्सा केंद्र, बिजली विहीन बिजली के तारों और निष्क्रिय पानी की टंकी जैसे निराशावादी संकेतों के बीच 1997 में खुले डॉन बॉस्को स्कूल के अहाते में बाहर निकले बच्चों के शोर से इलाका गुलजार लगने लगता है।
जाहिर है, हम इसे यूं ही नहीं छोड़ देंगे। उनकी समृद्ध संस्कृति और विरासत को बचाने के लिए सरकार निरंतर प्रयास कर रही है। टूरिस्ट प्लेस के तौर पर इसे विकसित करने की कई योजनाएं हैं। वंही के कुछ व्यवासय वर्ग इसे धूमिल करने में लगे है।और यहाँ के स्थानीय प्रशासन और वन बिभाग की मिली भगत से 3 दर्जन ईंटे भठे का संचालन किया जा रहा है।जिससे यँहा का पर्यवरण पुरी तरह से दूषित होती जा रही। है।इस ओर किसी की भी नजर नही जा रही है।