
लापरवाही से गढ़वा का 'नूर' हुआ 'बेनूर'
| | 2018-04-07T11:20:40+05:30
आशुतोष रंजन गढ़वा : वो बंधाते रहे उम्मीदों का बांध,पर अधूरा रहा तालाब रामबांध कभी शहर के लोगों के...
आशुतोष रंजन
गढ़वा : वो बंधाते रहे उम्मीदों का बांध,पर अधूरा रहा तालाब रामबांध कभी शहर के लोगों के लिए पानी की जरूरत को कुछ हद तक दूर करने के साथ साथ गढ़वा मुख्यालय की खूबसूरती में इज़ाफा करने वाला शहर के मध्य में अवस्थित रामबांध तालाब आज सरकारी उदासीनता के कारण बदसूरत हो कर रह गया है, नगर परिषद के अधीन आने वाले उक्त तालाब के सुंदरीकरण को ले कर अब तलक हुए लाखों रुपये खर्च पर नतीजा सिफर है,तीन कार्यकाल गुजर जाने के बाद अब एक बार फिर निकाय चुनाव आ गया है पर जो मुद्दा कल भी जीवित था, वह आज भी एक ज्वलंत मुद्दा के रूप में जड़वत है।
नारा से दूर नजरिया : नारा कुछ पर नज़रिया कुछ और,जी हां स्वच्छता है नारा जिनका,काम उससे जुदा है उनका,हम बात कर रहे हैं गढ़वा नगर परिषद की जिसके काम करने की ईमानदार नियत की बानगी देखनी हो तो जरा इस तालाब को नजर कर लीजिये,जिसके वर्तमान हालात से विभाग की विकासीय कार्यशैली परिलक्षित होती दिखेगी, कहा जाता है कि रामबांध नाम का यह पौराणिक तालाब कभी लोगों की पानी की जरूरत पूरी करने के साथ शहर की सुंदरता में बढ़ोतरी किया करता था, सुबह और शाम लोगों की मौजूदगी से गुलजार रहने वाला उक्त तालाब आज वीरान पड़ा है,अब तो लोग उसके पास जाना भी गंवारा नहीं करते, स्थानीय युवा निकेत कुमार कहते हैं कि हम आज बचपन से इस रामबांध तालाब के बारे में अपने अभिभावकों से सुनते आ रहे हैं, पर आज तालाब की दुर्दशा देख एक कसक होता है कि काश सभी शहरों जैसा अपने गढ़वा में भी एक सुव्यवस्थित तालाब सबके लिए महफूज होता।
जो थे भरा पूरा,हैं वो आज अधूरा : कभी अपने पास एक सुव्यवस्थित तालाब होने से खुद को भरा पूरा महसूस करने वाले स्थानीय लोग अपने को अधूरा सा मानते हुए जहां आज के हालात से व्यथित हो रहे हैं,वहीं इससे वास्ता रखने वाले शहर के वार्ड पार्षद पूनमचंद और इशलाम कुरैशी भी हालात को स्वीकारते हुए कहते हैं कि कभी ईमानदार प्रयास नहीं किये जाने के कारण आज तालाब की ऐसी हालत हुई है।
अब नहीं होगा राशि का दोहन, कह रहे मोहन : आज प्रशासनिक उदासीनता के कारण अस्तित्व विहीन होते जा रहे तालाब के बाबत पूछे जाने पर डीडीसी चंद्रमोहन कश्यप ने कहा कि खर्च होगी राशि निर्बाध,संवरेगा रामबांध तालाब साथ ही कहा कि नहीं होगा अब राशि का दोहन, कर रहा वादा यह मोहन। एक तरफ दिन बहुरने की आस में खस्ताहाल के बाद भी खुद को वजूद में बचाये रखने की जद्दोजहद में जुटा तालाब,दूसरी ओर उसे मुद्दा बना कर अपना वजूद बनाते प्रतिनिधि, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस बार फिर से चुनाव में तालाब को लेकर उम्मीद बंधाने वाले प्रतिनिधि उसे पूरा करायेंगे या पूर्ण रूप से अस्तित्व विहीन हो जाएगा तालाब यह देखने वाली बात होगी।