
जीत का कोई फॉर्मूला नहीं
| | 2018-03-15T11:25:11+05:30
भाजपा बुधवार को भी हुए उपचुनाव में बुरी तरह पराजित हो गई। 'भी' इसलिए कि इस साल हुए उपचुनावों में...
भाजपा बुधवार को भी हुए उपचुनाव में बुरी तरह पराजित हो गई। 'भी' इसलिए कि इस साल हुए उपचुनावों में भाजपा की लगातार हार हो रही है। हालांकि इस उपचुनाव के तुरंत पहले भाजपा ने पूर्वोत्तर में वहां अपनी सरकार बनाने में सफलता हासिल की, जहां उसके लिए सबसे मुश्किल माना जा रहा था।
उत्तर प्रदेश की हार भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका इसलिए भी कहा जा सकता है कि दोनों ही सीटें पहले भाजपा के पास थीं। इनमें से गोरखपुर तो भाजपा का बहुत बड़ा गढ़ माना जाता रहा है। वहां से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जीतते रहे हैं। वह सीट कई दशकों से भाजपा के पास थी। स्थिति कुछ ऐसी थी कि भाजपा को खुद भी ख्याल नहीं रहा होगा कि गोरखपुर सीट पर भी उसकी पराजय हो सकती है। इसी तरह दूसरी सीट फूलपुर भी वहां के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की सीट थी। उस सीट पर भी हार जाना उतना ही झटका देने वाला है।
इस हार और जीत के कई मायने निकाले जा सकते हैं। परंतु, सच यही है कि आज तक हार और जीत का कोई भी स्पष्ट कारण पता नहीं चल सका है। अगर यह कहें कि देश में भाजपा के खिलाफ जनमत तैयार हो रहा है, तो फिर त्रिपुरा जैसे राज्य में उसकी जीत कैसे हो जाती है? एक कारण यह भी गिना सकते हैं कि यहां सपा और बसपा के गठबंधन के कारण भाजपा हार गई। परंतु यह भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि वहां कांग्रेस के प्रत्याशी भी खड़े थे। उनकी जमानत जब्त हो गई। बिहार के परिणाम को लेकर भी सपा-बसपा गठजोड़ का तर्क खारिज हो जाता है। बिहार में राजद के खिलाफ भाजपा और जदयू का गठबंधन था। इसके बावजूद अररिया में में राजद की जीत हुई। यहां तक कि जहानाबाद विधानसभा सीट को लेकर एनडीए निश्चिंत था, वहां भी राजद प्रत्याशी की जीत हुई। हां, भभुआ जरूर भाजपा के साथ रहा।
सभी सीटों पर एक बात कॉमन रही कि कांग्रेस के प्रत्याशी सभी जगह हार गए। उत्तर प्रदेश की दोनों सीटों पर तो उनकी जमानत ही जब्त हो गई। बिहार में भी महागठबंधन के कोटे से भभुआ विधानसभा में जीत नहीं हासिल हो सकी।
इस हार-जीत ने भाजपा खेमे में जरूर हलचल मचाई होगी। अगले ही साल आम चुनाव होने हैं। ऐसे में एक के बाद एक उपचुनाव हारना भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं माने जा सकते। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश और बिहार की जीत से महागठबंधन बनने की दिशा में तेजी से प्रगति हो सकती है। बिहार में पहले से ही कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल में गठबंधन है। जीतनराम मांझी भी अब उसमें एनडीए छोड़कर शामिल हो चुके हैं। बसपा के कई राष्ट्रीय नेता संकेत दे रहे हैं कि पार्टी महागठबंधन में शामिल हो सकती है। कांग्रेस को भी पता है कि अगर उसे केंद्र की सत्ता में फिर से लौटना है तो अपने गठबंधन के दायरे को और विस्तृत करना होगा। इसमें मिली सफलता से चुनावी सफलता निर्भर करेगी। फिर भी जीत की गारंटी कोई नहीं दे सकता।