
29 मार्च से शुरू होगा वासंतिक नवरात्र
| | 2017-03-25T12:23:05+05:30
धर्मेन्द्र पाठक चतरा: वासंतिक नवरात्र आगामी 29 मार्च को कलश स्थापना के साथ हो रहा है। वैसे तो...
धर्मेन्द्र पाठक
चतरा: वासंतिक नवरात्र आगामी 29 मार्च को कलश स्थापना के साथ हो रहा है। वैसे तो प्रतिपदा तिथि की शुरुआत आगामी 28 मार्च (मंगलवार) को ही प्रात: 8.15 बजे से हो रही है जो 29 मार्च (बुधवार) को प्रात: 6.32 बजे तक रहेगी। इस कारण लोगों को बुधवार (29 मार्च) को प्रात: 6.33 बजे से पूर्व वासंतिक नवरात्र के लिए कलश स्थापना का विधान आरंभ कर लेना होगा। इस आशय की जानकारी देते हुए जन्मकुण्डली, वास्तु व कर्मकाण्ड परामर्श के आचार्य चेतन पाण्डेय ने बताया कि वासंतिक नवरात्र 29 मार्च से आरंभ होकर छह अप्रैल (गुरुवार) को व्रत के पारण के साथ संपन्न होगा। 29 मार्च को कलश स्थापना के साथ मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूजा होगी। अगले दिन (30 मार्च को) द्वितीया तिथि प्रात: 4.34 बजे तक ही है, अर्थात द्वितीया तिथि का क्षय हो रहा है, इसलिए प्रतिपदा (29 मार्च को) ही माता शैलपुत्री की पूजा के पश्चात द्वितीया तिथि की विहित पूजा मां ब्रह्मचारिणी की पूजा भी संपन्न की जायेगी। आचार्य ने बताया कि 30 मार्च को तृतीया के निमित्त (मां चंद्रघंटा की), 31 मार्च को चतुर्थी के निमित्त (मां कूष्मांडा की), एक अप्रैल को पंचमी के निमित्त (मां स्कंदमाता की), दो अप्रैल को षष्ठी के निमित्त (मां कात्यायनी की), तीन अप्रैल को सप्तमी के निमित्त(मां कालरात्रि की), चार अप्रैल को अष्टमी के निमित्त (मां महागौरी की) तथा पांच अप्रैल को नवमी के दिन (मां सिद्धिदात्री की) पूजा संपन्न होगी।
इसके बाद छह अप्रैल को नवरात्र का पारण, शस्त्र पूजन आदि के साथ नवरात्रि का विसर्जन होगा। उन्होने बताया कि दो अप्रैल को चैती छट महापर्व व पांच अप्रैल को रामनवमी जैसे पावन पर्व मनाये जायेंगे।
विशेष संयोग में करें भानु सप्तमी व्रत
आचार्य ने बताया कि चैत्र कृष्ण सप्तमी तिथि को भानु सप्तमी व्रत मनाया जाता है। इस वर्ष सप्तमी रविवार को होने के कारण इस व्रत के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। इस व्रत के लिए व्रती षष्ठी तिथि से ही संयम आरंभ कर देते हैं। षष्ठी के दिन स्नानादि के पश्चात व्रती सात्विक अल्पाहार लेते हैं. व्रत वाले दिन(सप्तमी) को प्रात: स्नानादि कर व्रती व्रत का संकल्प लेने के पश्चात आदित्य देव का सविधि पूजन करते हैं तथा अर्घदान करते हैं। अगले दिन सूर्योदय के उपरांत व्रती पुनरू सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करने के बाद पारण करते हैं। इस व्रत को करने से शारीरिक कष्टों का निवारण होने के साथ संतान सुख की प्राप्ति होती है। पूजन के लिए उपयुक्त समय प्रात: 7.22 से दिन के 11.53 बजे तक (वैसे आदित्यदेव का पूजन तय समय में जितना जल्द कर लें, उतना उत्तम माना जाता है। पारण व्रती अगले दिन (20 मार्च को) प्रात: 5.55 बजे सूर्योदय के पश्चात कभी भी व्रत का पारण कर सकते हैं।