
हृदय और आत्मा की शुध्दि है रोजा
मनुष्य ईश्वर का विलक्षण रचना है। वह शरीर और आत्मा का समन्वित रूप है। यदि आत्मा का प्रभाव शरीर की...
मनुष्य ईश्वर का विलक्षण रचना है। वह शरीर और आत्मा का समन्वित रूप है। यदि आत्मा का प्रभाव शरीर की अपेक्षा अधिक हुआ है तो मनुष्य सांसारिक जीवन से कटकर भगवद्भक्ति मं लीन हो जाता है और यदि शरीर को आत्मा की तुलना में अधिक महत्व दिया जाये तो मनुष्य ऐश्वर्य प्रेमी बन जाता है। अत: इस्लाम ने मनुष्य को इस दलदल से बचाने के लिए रमजान माह के रोजे अनिवार्य कर दिए हैं। कुरआन शरीफ में मुसलमानों पर रोजा फर्ज किया गया है। इसका उद्देश्य मनुष्य के आध्यात्मिक और नैतिक विकास के साथ हृदय और आत्मा की शुध्दि है। वह मनुष्य को धर्मपरायण और संयमी बनाता है। रोजे की स्थिति में वह बहुत सी बुराइयों और अवज्ञाओं से बच जाता है। रोजे से स्वास्थ्य को भी लाभ होता है। रोजे से पेट हल्का हो जाता है जिससे पाचन व्यवस्था गतिशील और स्वस्थ रहती है। रोजे से इंसान के पेट की एवं कई अन्य बीमारियां दूर हो जाती है। रोजे का इतना बड़ा महत्व है कि इसे यूरोपीय विद्वानों ने भी माना है। रोजे के बारे में उन्होंने जो विचार व्यक्त किये हैं, उन्हें हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
-डॉ. क्लाइयू
-रोजे रखने से खयालात परेशान नहीं होते, भावनाओं की उत्तेजना खत्म हो जाती है। बुराई व बद्कारियां दूर हो जाते हैं और अविवाहित जीवन भी भली प्रकार गुजर जाता है। -कभी-कभी रोजा रखना अच्छा होता है। इससे शरीर को बहुत से फायदे हासिल होते हैं, लेकिन रोजा रखते और खोलते समय अधिक खाने-पीने से बचना चाहिए।
-डॉ. फेंकलन
-शान्ति, सुकून और इत्मीनान पैदा करने के लिए रोजा बेहतरीन साधन है।
-डॉ. समिरेट
-भावुक व्यक्तियों और अविवाहित व्यक्तियों के लिए रोजा अत्यन्त फायदेमंद है। इससे विचार सही और पॉकीजा रहते हैं और शैतानी विचार पैदा नहीं होते।
-डॉ. अब्राह्म
-परेशानी व मुसीबत, भूख, प्यास सहन करने के लिए रोजे से बेहतर कोई चीज नहीं है।
-डॉ. हंगर