
सोशल मीडिया और हम
भारतीय मीडिया के पुराने परिपेक्ष्य पर नजर डाले तो हमें पता चलता है कि हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभिक...
भारतीय मीडिया के पुराने परिपेक्ष्य पर नजर डाले तो हमें पता चलता है कि हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभिक काल भारतीय नवजागरण अथवा पुनर्जागरण का काल था। उस दौरान भारत की राष्ट्रीय, सामाजिक, जातीय तथा भाषायी चेतना जागृत हो रही थी। विचार किया जाए तो इस दौर की पत्रिकारिता एक मिशन के तौर पर काम कर रही थी और लोगों के बीच जनजागृति का एक साधन थी। वास्तव में उस दौर के सभी पत्रकारों ने पत्रकारिता के क्षेत्र में जो आयाम और आदर्श स्थापित किये, वे आज भी पत्रकारिता की उदीयमान पीढ़ी के लिये मार्गदर्शन का स्रोत है लेकिन धीरे-धीरे समाज परिवर्तन, सोच परिवर्तन, साधन परिवर्तन आदि के कारण मीडिया और उसके साधन अपना स्वरूप बदल रहे हैं। आज सोशल मीडिया का युग है। सोशल साइटस ही लोगों से सीधे तौर पर जुड़ी है। वही लोगों को जागृत कर उनके विचारों को हवा देकर फैलाने का काम कर रही हैं। आज हर तरफ सोशल मीडिया अथवा न्यू-मीडिया के सकारात्मक पक्षों पर कम चर्चा हो रही है जबकि उसके नकारात्मक पक्षों पर अधिक विचार किया जा रहा है। आज लोग सोशल साइटस के माध्यम से अपने विचार प्रकट कर रहे हैं। चाहे वह सरकार के खिलाफ हो या किसी अन्य घटना के प्रति। वास्तव में सोशल मीडिया ने अभी तक विभिन्न आंदोलनों और सामाजिक बहसों को चलाने में युवाओं को एक मंच प्रदान किया है। जिसका उपयोग सरकार की कुनीतियों के विरुध्द आंदोलनों को खड़ा करने के लिये भी किया गया है। यही सरकार की फिक्र का भी कारण है। सरकार आए दिन सोशल मीडिया पर उंगली उठाती है और यह कहने से नहीं चूकती कि सोशल मीडिया को सही ढंग से प्रयोग में लाएं नहीं तो इस पर भी लगाम लगा दी जाएगी। सरकार का सोशल मीडिया के प्रति कड़ा व्यावहार या बयान देना बिल्कुल ठीक है क्योंकि कुछ शरारती तत्व अपनी ऊट-पटांग हरकतों से देशवासियों को गुमराह करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ऐसे में सरकार यदि कोई ठोस कदम नहीं उठाएगी तो क्या हम ऐसे ही लोगों के हाथों की काठपुतली बनकर रह जायेंगे जो सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को गुमराह करना चाह रहे हैं। सोशल मीडिया आम आदमी का मंच है लेकिन इसे गलत रूप से प्रयोग करके लोग इसको भी बंद कराने में जुटे हैं। एक समय था जब टीवी पर मनोरंजन के कार्यक्रम लोग फ्री में देखते थे और एक आज का समय है कि आप हर एक चैनल देखने के पैसे दे रहे हैं, क्या लोगों की समझ में नहीं आ रहा। यह भौतिकवादी युग है, यहां किसी की नहीं चलती। सभी कुछ बाजार की गिरफ्त में है। सरकार नीतियां बनाती हैं, फिर उन पर अमल होता है और जनता उनके प्रयोग का साधन होती है। यदि सोशल मीडिया के साथ लोग ऐसे ही ऊट-पटांग काम करते रहे तो हो सकता है भविष्य में आपको अलग-अलग साइट पर काम करने के लिए अलग-अलग पैसे देने होंगे। हमें यह ध्यान रखना जरूरी है कि हमारे देश की कितनी जनता आज भी दो वक्त की रोटी खाने में सक्षम नहीं है। फिर वह कैसे इन सभी चीजों से जुड़ेंगे। टीवी चैनल तो दूर हो ही गए हैं। अब इसे भी दूर कर दो। यह सभी प्रयास केवल बड़े लोगों का पेट भरने के लिये है। इस पर सोचना बहुत जरूरी है।