
सीटिंग क्षमता के चक्कर में घिस रहे हैं वाहनस्वामी
रांची, झारखंड का परिवहन विभाग असंवेदनशील एवं अवैज्ञानिक हो गया है। परिवहन अधिकारियों को नियम एवं...
रांची, झारखंड का परिवहन विभाग असंवेदनशील एवं अवैज्ञानिक हो गया है। परिवहन अधिकारियों को नियम एवं कानून की भी जानकारी नहीं है। मोटरवाहन अधिनियम की जानकारी के अभाव में राज्य के जिला परिवहन कार्यालयों में निजी निबंधित वाहनों का व्यावसायिक निबंधन नहीं हो पा रहा है। निजी वाहनों का व्यावसायिक निबंधन नहीं होने से एक ओर सरकार को जहां प्रति महीने करोड़ों रुपए राजस्व की हानि हो रही है वहीं दूसरी ओर वाहनों की बैठान (सीटिंग) क्षमता (सीटिंग कैपेसिटी) पांच-सात के चक्कर में वाहनस्वामी चक्की में पिस रहे हैं। इसके लिए परिवहन विभाग के शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारियों के साथ-साथ जिलों के मोटरयान निरीक्षक (एमवीआई) मुख्य रूप से जिम्मेवार माने जा रहे हैं। राज्य में 10,000 से अधिक निजी निबंधित वाहनों का धड़ल्ले से व्यावसायिक उपयोग कर लाभ अर्जित किया जा रहा है।
राज्य के जिला परिवहन पदाधिकारियों एवं मोटरयान निरीक्षकों को यह पता ही नहीं है कि पांच सीटोंवाली निजी कार को व्यावसायिक वाहन में बदलें जाने पर उसकी बैठान क्षमता पांच होगी या सात होगी। पांच-सात सीटों के चक्कर में वाहनस्वामी पिसे जा रहे हैं। वाहनस्वामी व्यावसायिक वाहन में निबंधन करने के लिए दबाव बनाते हैं तो पदाधिकारियों द्वारा परिवहन मुख्यालय से इस संबंध में नया आदेश चाहते हैं। पूर्व के सरकारी आदेश का उन्हें पता नहीं है। विभाग के लिए यह बहुत ही शर्मनाक बात है। सबसे दुखद बात तो यह है कि मोटरयान निरीक्षकों को यह पता ही नहीं है कि बैठान क्षमता पांच लिखें या सात लिखें। इसलिए बैठान क्षमता लिखे बिना ही व्यावसायिक निबंधन करने के लिए आवेदन फॉर्म जिला परिवहन कार्यालय भेज दिया जाता है। फलत: जिला परिवहन कार्यालयों में व्यावसायिक निबंधन लंबित हो जाता है।
पूर्व में निजी निबंधित वाहनों का व्यावसायिक उपयोग करने पर वैसे वाहनों के खिलाफ अभियान चलाकर व्यावसायिक वाहनों में निबंधन कर निजी निबंधन की तिथि से रोड टैक्स एवं अतिरिक्त रोड टैक्स वसूल किया जाता था। परन्तु सरकार का ध्यान इस ओर अभी नहीं है। जिले के बड़े-बड़े होटलों, ट्रांसपोर्ट एजेंसियों, निजी, सरकारी एवं सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में निजी निबंधित वाहन कतार में खड़े नजर आते हैं। जिनका व्यावसायिक वाहन में परर्िवत्ति होना चाहिए था। लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण नहीं हो सका।
जो थोड़े बहुत वाहनस्वामी स्वेच्छा से व्यावसायिक वाहन में निबंधन कराना चाहते हैं उन्हें नियम की जानकारी के अभाव में अनावश्यक परेशान किया जाता है। बैठान क्षमता पांच हो या सात इसका पेंच अभी विभाग सुलझा नहीं सका है। विभाग की ऐसी मंशा भी नहीं है कि परिवहन विभाग का अपना स्वतंत्र कैडर हो। जिसको नियम-परिनियम की जानकारी हो।