
संयम है सूत्र विजय का
संसार रूपी युध्द को जीतने के लिये निर्मल और स्थिर मन तरकश के समान है। मन का वश में होना तथा यम और...
संसार रूपी युध्द को जीतने के लिये निर्मल और स्थिर मन तरकश के समान है। मन का वश में होना तथा यम और नियम, ये बहुत से बाण हैं। इनके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं।
मन पर नियंत्रण का अर्थ भावों का दमन नहीं अपितु उनका परिष्कार करना है। उदात्त मूल्यों से युक्त सकारात्मक भावों द्वारा ही सतही या अनुपयोगी व घातक भावों से मुक्ति संभव है। सकारात्मक भावों के विरोधी भावों से बचाव भी आवश्यक है।
इसके लिये सकारात्मक भावों को दृढ़ से दृढ़तर करते जाना अनिवार्य है। यही वास्तविकस विजय है। यही साधना है। साधना ही विजय है। साधना का सूत्र दमन नहीं, संयम ही है। वास्तव में जब हम साधना की बात करते हैं तो दमन से विरत होने की बात ही करते हैं। यदि हम कहें कि संयम ही साधना है तो अत्युक्ति नहीं होगी। प्रश्न उठता है क साधना क्या है और इसकी क्या जरूरत है?
साथ ही हमारे अंदर जो अच्छे संस्कार हैं, वे भी किसी भी हालत में खिसकने न पाएं वरना उनके स्थान पर संभव है गलत संस्कार या विचार आकर डेरा डाल लें और हमारी साधना बेकार हो जाए।
यदि संक्षेप में कहें तो नकारात्मकता के स्थान पर सकारात्मकता का प्रतिस्थापन तथा संचित सकारारात्मकता का बचाव ही साधना है। साधना के लिये स्वयं से संघर्ष करना पड़ता है लेकिन ये बाहरी संघर्ष नहीं आंतरिक संघर्ष होता है।
जहां तक दमन की बात है, दमन कभी भी स्थायी नहीं हो सकता। साथ ही दमन की प्रक्रिया के साथ विरोध भी आरंभ हो जाता है। यदि कोई सरकार दमन की नीति अपनाती है तो उसका विरोध भी जरूर होता है और एक दिन उस सरकार का सफाया ही हो जाता है अत: दमन ठीक नहीं। दमन पीड़ाकारक होता है जबकि संयम से दुख की अनुभूति नहीं होती है अत: संयम ही श्रेयस्कर है।
हमारी भी यही स्थिति है, मान लीजिए मैं आम खाना चाहता हूं लेकिन मैं आम खाने की अपनी इच्छा का दमन कर देता हूं तो मुझे इस कारण काफी बेचैनी रहेगी। यही बेचैनी मेरे दुख का कारण है। यदि आम खाने की इच्छा का दमन न करके वह इच्छा ही समाप्त कर दी जाए तो दुख नहीं होगा और यह संभव है मन के संयम द्वारा।
इच्छाओं की पूर्ति के अभाव में दुख होता है अत: मन में इच्छाओं को न पनपने दें और यह संभव है मन के निग्रहअर्थात् संयम द्वारा। संयम वस्तुत: मानसिक होता है जबकि दमन भौतिक। संयम पूर्णत: आंतरिक भाव है जबकि दमन बाह्य प्रक्रिया। दमन से हिंसा तथा अन्य विकारों की उत्पति होती है जबकि संयम से अनुशासन और अहिंसा का उदय होता है।
मन को साधना भी तो सरल नहीं। कृष्ण जब अर्जुन को कहते हैं कि मन के निग्रह द्वारा ही सब संभव है तो अर्जुन यही शंका व्यक्त करते हैं कि मन का निग्रह करना तो बहुत कठिन है। कृष्ण कहते हैं मुश्किल तो है पर असंभव नहीं। अभ्यास और वैराग्य से इसका निग्रह संभव है। भाव प्रदूषण से मुक्त होना ही संयम है और यही वास्तविक साधना है। भावों को उचित आकार प्रदान करके ही हम सारी समस्याओं से निपट सकते हैं।