
शिकायतों से खफा हुए मुख्य न्यायाधीश
| | 2015-10-28T20:37:06+05:30
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एच.एल. दत्तू ने कहा है कि वकीलों की बेनामी शिकायतों की वजह से जजों...
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एच.एल. दत्तू ने कहा है कि वकीलों की बेनामी शिकायतों की वजह से जजों का जीवन नरक हो गया है। देश के मुख्य न्यायाधीश की यह टिप्पणी विचार की मांग करती है। सारा देश न्यायापालिका की ओर बहुत आशा से देखता है पर न्यायपालिका के शीर्ष से इस तरह की चिंता सोचने को विवश करती है कि न्यायपालिका में सब कुछ ठीक नहीं है। गौर करने की बात यह भी है कि मुख्य न्यायाधीश ने इसी टिप्पणी के दौरान खुल कर कॉलेजियम प्रणाली की वकालत भी की है। आखिर न्यायपालिका की इस चिंता के सरोकार क्या हैं?
भारत में आजकल शिकायत करना आम परम्परा हो गई है। इससे हाईकोर्ट के जज ही नहीं, सरकारी व्यवस्था में काम करने वाला हर नुमाइंदा परेशान है। इस पर सभी को सोचने की जरूरत है। खास कर न्यायिक व्यवस्था से जुड़े लोगों को ऊपर आती है तो मसला गंभीर हो जाता है। जज एक ऐसी व्यवस्था से जुड़ा होता है, जहां लोग न्याय की उम्मीद लेकर आते हैं। फैसला करने पर दोनों पक्ष कभी खुश नहीं होते हैं क्योंकि फैसला प्रकरण के तथ्यों के आधार पर लिया जाता है। इनमें कई तरह की संभावनाएं होती हैं। इसमें थोड़ी सी भी भूल हो जाए तो वह शिकायत का रूप ले लेती है। जज पर कई तरह के आरोप लगने लगते हैं। पहले तो बात चर्चा तक ही सीमित होती थी लेकिन अब यह शिकायत के रूप में शीर्ष लोगों तक पहुंच रही है। सही भी है, असंतुष्ट व्यक्ति अपने स्तर पर प्रयास करता ही है। सारे मसले में सोचने वाली बात शिकायत की सच्चाई को लेकर है। इसका कोई पैमाना नहीं है। फिर भी इस पर कुछ अलग तरीके से सोचना होगा, तय करना होगा, शिकायत में सच्चाई कितनी है? शिकायतकर्ता कौन है? उसका वजूद क्या है? वह कितना गंभीर है?
गलत परम्परा
न्यायपालिका का बर्ताव आम आदमी के मन में विश्वास बनाए रखने वाला होना चाहिए। उसे किसी प्रकार के संदेह की स्थिति से ऊपर होना चाहिए। इस स्थिति को बनाए रखना न्यायाधीशों का कर्तव्य है लेकिन कई बार कोर्ट में न्यायाधीश जो टीका टिप्पणी करते हैं, उससे आम आदमी के विश्वास के ठेस पहुंचती है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एच.एल. दत्ती की ओर से वकीलों के संदर्भ में जो बयान आया है वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। एक वकील अगर कोई गलती करता है तो उससे पूरे वकील समुदाय पर उंगली नहीं उठाई जानी चाहिए। यह अनुचित है। मुख्य न्यायाधीश का यह कहना कि वकीलों की झूठी शिकायतों की वजह से न्यायाधीशों का जीना हराम हो गया है, इससे जनता की नजरों में सारे वकील समुदाय की गरिमा और सम्मान को ठेस पहुंची है। जिस तरह से एक न्यायाधीश के गलत कृत्य के मद्देनजर सारे न्यायाधीश समुदाय को भला बुरा कहना ठीक नहीं है, उसी तरह से किसी एक वकील की गलती के लिए इस तरह से टिप्पणी करना कि सारा वकील समुदाय ही एक गलत नजर से देखा जाए, एक गलत परम्परा है। वकील का काम यह भी होता है कि अगर न्यायपालिका या कार्यपालिका में कुछ गलत हो रहा है तो उसको दुरूस्त करने के लिए सभी संभव प्रयास करें। इसलिए अगर कोई वकील किसी न्यायाधीश के गलत आचरण के बारे में शिकायत करता है तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता है लेकिन इस संदर्भ में एक बात और कहना जरूरी है। माननीय मुख्य न्यायाधीश ने यह टिप्पणी एक न्यायाधीश की नियुक्ति के बारे में सुनवाई करते हुए की है। इस नियुक्ति की सिफारिश उसी कॉलेजियम ने ही की थी जिसके संभवत: भाग खुद मुख्य न्यायाधीश एच.एल. दत्तू रह चुके हैं, इसलिए न्याय का सिध्दांत तो यही कहता है कि इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश को नहीं करनी चाहिए थी, क्योंकि न्याय का सिध्दांत तो यही कहता है कि कोई भी व्यक्ति खुद ही गलती करने वाला और खुद ही न्याय करने वाला नहीं हो सकता।