
राजयोग से मिलती है मन और तन को शांति
कुछ देर के लिये अपने मन को चारों ओर से हटाकर स्वयं को महसूस करे कि मैं एक आत्मा हूं, मैं आत्मा एक...
कुछ देर के लिये अपने मन को चारों ओर से हटाकर स्वयं को महसूस करे कि मैं एक आत्मा हूं, मैं आत्मा एक चमकता हुआ दिव्य सितारा हूं। मैं आत्मा रूपी दिव्य सितारा, इस शरीर के भ्रकुटी के बीच विराजमान हूं। आंखों से देखने वाली, मुख द्वारा बोलने वाली, कानों द्वारा सुनने वाली, मैं एक चैतन्य शक्ति आत्मा हूं। यह शरीर मेरा वस्त्र है। जिसे धारण कर मैं आत्म सृष्टि नाटक मंच का पार्ट बजा रही हूं। अब मैं आत्मा रूपी सितारा कुछ देर के लिये इस शरीर को इसी स्थान पर छोड़कर अपने घर परमधाम जा रहा हूं। सूर्य, चांद तारागण से भी पार जा रहा हूं। आवाज की दुनिया से भी दूर जा रहा हूं। महसूस करें कि मैं आत्मा रूपी दिव्य सितारा ऊपर की ओर जा रहा हूं। अब मैं आत्मा रूपी सितारा अपने घर परमधाम में आ चुका हूं। मेरे चारों ओर लाल सुनहरे रंग का दिव्य प्रकाश फैला हुआ है।
यहां चारों तरफ शांति ही शांति है। पवित्रता है। यहां मैं आत्मा अपने सत्य स्वरूप में स्थित हूं। मैं आत्मा पवित्र स्वरूप हूं। जैसे मैं आत्मा अतिसूक्ष्म ज्योति बिन्दु स्वरूप हूं। वैसे मेरे परमपिता परमात्मा भी ज्योति बिन्दु स्वरूप हैं। वो मेरे सामने हैं। मेरे परमपिता परमात्मा शांति के सागर हैं। उनसे गहरे नीले रंग की शांति की शीतल लहरें निकल निकलकर चारों ओर फैल रही हैं और मैं आत्मा रूपी सितारा शांति के सागर में गहरा समाता जा रहा हूं। असीम शांति का अनुभव हो रहा है। शांति के सागर परमात्मा से शांति की शीतल किरणें मुझ आत्मा रूपी सितारे पर एकत्रित हो रही है और मैं आत्मा रूपी सितारा शांति की शक्ति से भरपूर हो रहा हूं। मैं आत्मा शांति का एक दिव्य सितारा हूं। मैं आत्मा शांत स्वरूप बनता जा रहा है। यह कितनी सुंदर अनुभूति है, खो जाइए कुछ देर के लिये इस सुखद अनुभूति में। राजयोग अर्थात् आत्मस्वरूप में स्थित होकर परमात्मा की यह याद करते हुए सकारात्मक दृष्टि देने और अच्छा सोचने से कई सार्थक परिणाम सामने आते हैं। ऐसा वैज्ञानिक भी मानते हैं। राजयोग से विकर्मो यानि विकारों को समाप्त करने में तो मदद मिलती है। वैज्ञानकों द्वारा विभिन्न स्तर पर किये गए अनुसंधान के निष्कर्ष बताते हैं कि राजयोग न सिर्फ मनुष्य के मन और शरीर को दुरुस्त रखता है बल्कि अगर इसका उपयोग पेड़ पौधों पर किया जाए तो पेड़ पौधे सामान्य से अधिक तेजी से न सिर्फ बढ़ते हैं, बल्कि सामान्य से अधिक स्वस्थ रहते हैं।सृष्टि की रचना प्रक्रिया सृष्टि की रचना की प्रक्रिया का चिंतन करे तो कहा जाता है कि सृष्टि के आरंभ में ईश्वर की आत्मा पानी पर डोलती थी और आदिकाल में परमात्मा ने ही आदम व हवा को बनाया, जिनके द्वारा स्वर्ग की रचना की गयी। चाहे शिव पुराण हो या मनुस्मृति या फिर अन्य धार्मिक ग्रंथ हर एक में परमात्मा के वजूद को तेजस्वी रूप माना गया है। सवाल उठता है कि अगर परमात्मा है तो वह कहां है, क्या किसी ने परमात्मा से साक्षात्कार किया है या फिर किसी को परमात्मा की कोई अनूठी अनुभूति हुई है। साथ ही यह भी सवाल उठता है कि आत्माएं शरीर धारण करने से पहले कहां रहती हैं और शरीर छोड़ने पर कहां चली जाती हैं। इन सवालों का जवाब भी सहज ही उपलब्ध है। सृष्टि चक्र में तीन लोक होते हैं पहला स्थूल, वतन, दूसरा सूक्ष्म वतन और तीसरा मूल वतन अर्थात परमधाम। स्थूल वतन जिसमें हम निवास करते हैं पांच तत्वों से मिलाकर बना है। जिसमें आकाश, पृथ्वी, वायु, अग्नि और जल शामिल हैं। इसी स्थूल वतन को कर्म क्षेत्र भी कहा गया है। जहां जीवन मरण है और अपने-अपने कर्म के अनुसार जीव फल भोगता है। इसके बाद सूक्ष्म वतन सूर्य, चांद और तारों के पार है जिसे ब्रह्मपुरी, विष्णुपुरी और शंकरपुरी भी कहा जाता है। सूक्ष्म वतन के बाद मूल वतन है जिसे परमधाम कहा जाता है। यही वह स्थान है जहां परमात्मा निवास करते हैं। यही वह धाम है जहां सर्व आत्माओं का मूल धाम है। यानि आत्माओं का आवागमन इसी धाम से स्थूल लोक के लिये होता है। राजयोग के माध्यम से आत्मा की परमात्मा से मिलन की अनुभूति का सुखद एहसास है। वही राजयोग के माध्यम से हम विकारों से दूर होकर स्थूल लोक से ही परमधाम में विचरण की अनुभूति कर सकते हैं। जो परम कल्याणकारी और परमसुखद हैं।