
योगासन : एक समग्र उपचार प्रक्रिया
स्वास्थ्य को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए केवल आहार व मनोबल ही पर्याप्त नहीं, शरीर को हिलने-डुलने का...
स्वास्थ्य को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए केवल आहार व मनोबल ही पर्याप्त नहीं, शरीर को हिलने-डुलने का भी अतिरिक्त समय मिलना चाहिए, अन्यथा उसके विभिन्न अंग-अवयव धीरे-धीरे व्याधिग्रस्त होते चले जायेंगे। योगासनों का विधान इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिये होता रहा है। यद्यपि पुरातनकाल से ही इनका आविष्कार आत्मिक उन्नति के लिए शरीर को स्वस्थ तथा निरोगी दशा में बनाए रखने की दृष्टि से किया गया था, इनका मूल उद्देश्य चक्र, उपत्यिकाओं जैसे शरीर के सूक्ष्म शक्ति-केंद्रों, ऊर्जा-स्रोतों पर दबाव डालना तथा उनमें सन्निहित अतीन्द्रिय क्षमताओं, दिव्य सामर्थ्यों को जाग्रत और विकसित करना था किन्तु विज्ञान-क्षेत्र में काया को ही प्रधानता मिलने के कारण योग के संबंध में उसका भौतिक पक्ष ही आकर्षक लगा है और आसन, प्राणायाम को ही योग माना जाता है तथा उसका सहारे स्वास्थ्य रक्षा के लिए प्रयत्न किया जाता है।
आधुनिक स्वास्थ्य-विद्या- विशारदों ने भी योगाभ्यासरक आसन-व्यायामों को शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक पाया है। उनमें से बहुत-सी क्रियाओं को कुछ परिवर्तित करके सर्वसाधारण के लिए सरल भी बना दिया गया है। आजकल इन यौगिक व्यायामों का अभ्यास कितने ही साधारण मनुष्य व्यक्तिगत रूप से करते हैं। साथ ही बहुसंख्य स्कूलों, कॉलेजों में विद्यार्थियों, खिलाड़ियों एवं अंतरिक्ष विज्ञानियों को उनका सामूहिक रूप से अभ्यास कराया जाता है। भारत के अतिरिक्त यूरोप और अमेरिका के कितने ही महाविद्यालयों में इस संदर्भ में गहन अनुसंधान चल रहा है। विद्यार्थियों को नियमित योगाभ्यास कराया जाता है और विभिन्न शारीरिक अंगों तथा श्वसन-तंत्र आदि की क्रियाओं में हुए परिवर्तनों को जांचा-परखा जाता है। स्वास्थ्य संवर्ध्दन के साथ ही मानसिक एकाग्रता को भी इसमें सम्मिलित किया जाता है। योगासनों के संबंध में जो शोध-अनुसंधान देश और विदेशों में चल रहा है, उसमें वे अंग संचालन की सामान्य व्यायाम प्रक्रिया न रहकर उससे अधिक बढ़े-चढ़े सिध्द हो रहे हैं। जिन आसन-अभ्यासों को कभी उपहासास्पद ठहराया जाता था, अब उनकी उयोगिता देखते हुए तथाकथित सभ्यताभिमानियों को भी आकर्षित होते देखा जाता है। मधुमेह में लाभ-व्यायाम एवं चिकित्सा विशेषज्ञों ने स्वस्थ रहने के लिए योगासन और प्राणायम को दैनिक जीवन में अनिवार्य रूप से सम्मिलित करने का परामर्श दिया है। इसी तरह सेंट्रल क्लीनिक हॉस्पिटल, मास्को के बाल-रोग विशेषज्ञ एवं सर्जन डा. अनातोली ने रोगी बच्चों को सरल साधारण योगासनों के माध्यम से निरोग करने में असाधारण सफलता पायी। हृदय रोग विशेषज्ञों ने सैकड़ों विभिन्न प्रकार के रोगियों को योग की क्रियाओं द्वारा ठीक करने में आशातीत सफलता प्राप्त की है। उन्होंने दमा से पीड़ित व्यक्तियों को औषधियों देने के बजाय आसन और प्राणायाम का अभ्यास कराया। परिणामस्वरूप उनके शरीर में प्रवेश करने वाली आक्सीजन एवं कार्बन डाई आक्साइड के बीच रहने वाला असंतुलन दूर हो गया और दमा के रोगियों को बहुत लाभ हुआ। दमा के अतिरिक्त योगासनों द्वारा मिर्गी, उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोग जैसी घातक बीमारियों का भी उपचार करने में उन्होंने सफलता प्राप्त की है।
हृदय रोग में
हृदय रोगियों पर भी आसनों के प्रभाव का अध्ययन किया गया है। मद्रास मेडिकल कॉलेज के मूर्धन्य चिकित्सा विज्ञानी डा. लक्ष्मीकांतन् ने ऐसे उच्च रक्तचाप के रोगियों पर प्रयोग किये, जिन्हें मेडिकल चिकित्सा से कोई विशेष फायदा नहीं हुआ। रोगियों की स्थिति के अनुसार उन्हें शवासन, हलासन, सर्वांगासन और विपरीत करणी मुद्रा का महीनों नियमित अभ्यास कराया गया। परीक्षरोपरान्त राया गया कि रोगियों को पहले की अपेक्षा अच्छी गहरी नींद आने लगी और वे अधिक स्फूर्ति एवं शक्ति का अनुभव करने लगे। इसी प्रकार के परिणाम हृदय रोगियों पर पाये गये। अमेरिका के वरिष्ठ चिकित्सकों ने भी प्रयोग के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं कि शवासन एवं ध्यान का हृदय रोगों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। शीर्षासन को योगासनों में सबसे उत्तम माना गया है। देखा गया कि शीर्षासन के पश्चात् शवासन करने से रक्त को जमाने वाले पदार्थों की मात्रा में संतुलन आने लगता है। इससे हृदय रोगों की रोकथाम में सफलता मिलती है। आसन के प्रभाव से श्वेत रक्त कणों में अभिवृध्दि पायी गयी, जिससे शरीर की जीवनी शक्ति एवं रोग निरोधक क्षमता में वृध्दि हुई। एक्स-रे द्वारा देखे जाने पर वक्षस्थल फैला हुआ पाया एवं हृदय पूरी तरह दबाव रहित देखा गया। शीर्षासन से वस्तुतः फेफड़ों को पर्याप्त खुला स्थान मिलता है। अतः उनमें आक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है। यह अभिवृध्दि 35 प्रतिशत तक देखी गयी है तथा श्वास प्रश्वास की दर एवं मात्रा में कमी पायी गयी है। देखा गया है कि श्वास की मात्रा तो प्रति मिनट 8 लीटर के स्थान पर 3 लीटर हो गयी परन्तु फेफड़ों की उसके कन्ज्युम करने, अवशोषित करने की क्षमता बढ़ गयी। निष्कासित दूषित वायु में आक्सीजन की मात्रा में 10 प्रतिशत कमी हो गयी। लोनावाला-महाराष्ट्र के अनुसंधनकर्ता ने सर्वागासन एवं मयूरासन को ग्रसित रोगियों के लिए अन्य असानों की तुलना में अधिक उपयोगी पाया है। चेकोस्लोवाकिया के प्रयोगकर्ता वैज्ञानिकों ने भुजंगासन एवं शवासन के आधार पर मानसिक तनाव मिटाने में असाधारण रूप से सफलता पायी है। योगाभ्यासपरक, आसन, प्राणायाम पूर्णतः वैज्ञानिक व्यायाम एवं उपचार हैं। इनमें मांसपेशियों में खिंचाव एवं फैलाव होने से रक्तप्रवाह की गति में तीव्रता तो आती है है, साथ-साथ शरीर के सूक्ष्म ऊर्जा केन्द्रों पर भी दबाव पड़ता है। फलतः स्वास्थ्य संवर्ध्दन के साथ चेतनात्मक परिष्कार एवं अन्यान्य आध्यात्मिक लाभ होते हैं। इन्हें जीवन में स्थान मिलना ही चाहिए।