
बहुपयोगी फल है बेल
हिन्दी में बेल, संस्कृत में विल्व, गुजराती में बिलोविलु, मराठी में बेलफल कहते हैं। इसमें विटामिन...
हिन्दी में बेल, संस्कृत में विल्व, गुजराती में बिलोविलु, मराठी में बेलफल कहते हैं। इसमें विटामिन ए.बी. और सी की मात्रा अधिक पायी जाती है। यह हिन्दुस्तान के अनेकों देशों में पाया जाता है। इसका वृक्ष लगभग 40-50 फुट ऊंचा होता है। इसके पत्ते तीन-तीन मिलकर एक एक-एक सींक पर लगते हैं। इन त्रिदलों में नीचे के दो दल छोटे और दोनों के बीच का तीसरा दल बड़ा होता है। इसके पत्ते नोंकदार लम्बे और चिकने किनारों को होते हैं। पत्तों के निकास के स्थान पर बड़े-बड़े तीक्ष्ण कांटे होते हैं। चैत्र माह में नये-नये पत्ते आते हैं। इसका फूल सफेद रंग का होता है, इस पर गोल और कड़े फल लगते हैं जो बढ़कर एक किलो तक हो जाते हैं। पके फलों में लाल रंग की हल्की मीठी गंध वाला गूदा भरा होता है और गूदे के अंदर पृथक-पृथक बीज होते हैं। इसके पत्तों और फलों से शिवजी की पूजा भी होती है।
) बुध्दि और आयु बढ़ाने के लिये : पके बेल के बीजों कातेल निकाल कर तेल मस्तक और शरीर पर मर्दन करने से बुध्दि और आयु भी बढ़ती है।
) मसूड़ों के दर्द में : मसूड़ों में रक्त आता हो तो बेल के दो तोले शर्बत में दूध मिलाकर नित्य पीने से ठीक हो जाता है।
) दिले के लिये : इसकी छाल का क्वाथ पीने से दिल की बीमारी दूर हो जाती है।
) हैजे में : प्रतिदिन बेल की पत्ती को उबालकर या पीसकर पीने से हैजा नहीं होता है।
) कान दर्द में : इसके पत्तों के स्वरस को तिल के तेल में मिलाकर कान में 2-4 बूंदे डालने से कान की पीड़ा तथा ऊंचे सुनने वालों के रोग ठीक हो जाते हैं।
) पुराने ज्वर में : इसकी पत्तियों का रस निकाल कर एक तोले शहद में मिलाकर सेवन करने से कुछ ही दिनों में पुराना ज्वर ठीक हो जाता है और हाथ-पैरों की जलन भी ठीक हो जाती है।
) ज्वर में : इसके पत्तों का चूर्ण बनाकर सेवन करने से सभी प्रकार के ज्वर दूर हो जाते हैं।
) सूजन पाण्डु रोग में : इसके पत्तों के 6 माशे स्वरस में एक माशे काली मिर्च मिलाकर पिलाने से मनुष्य की सूजन खत्म हो जाती है तो पांडु रोग में हो जाया करती है।
बेल के प्रयोग से अरुचि दूर होती है। पतले दस्तों का आना बंद हो जाता है। कफ-वात-पत्ति को ठीक करता है। उदर-शूल, संग्रहणी, मिचली, कै, मलरोधक, आमशूल के रोग ठीक हो जाते हैं।