
प्रोस्टेट वृध्दि में आयुर्वेदिक उपचार कारगर
डा. भानु शर्मास्किन कैंसर के बाद विश्व में पुरुषों में होने वाली मौतों का कारण प्रोस्टेट कैंसर है।...
डा. भानु शर्मा
स्किन कैंसर के बाद विश्व में पुरुषों में होने वाली मौतों का कारण प्रोस्टेट कैंसर है। लेकिन यह कैंसर प्रोस्टेट इनलार्जमेंट के प्रारम्भ में अनदेखी करने पर ही इस स्थिति में पहुंचता हैं। प्रोस्टेट हमारे मूत्र और जनन अंग से जुड़ी अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रंथि है। पौरुष ग्रंथि या (प्रोस्टेट ग्लैंड) अखरोट के आकार की प्रायः 4 सेमी लम्बी ऐसी ग्रंथि है जो मूत्राशय के नीचे स्थित मूत्रवाहिनी नली यूट्रस को चारों ओर से घेरती है। यह ग्रंथि सहवास के साथ एक विशेष प्रकार के द्रव का स्राव करती है, जिसमें शुक्राणु उपस्थित होते हैं। किन्तु समय के साथ जब यह ग्रंथि बढ़ने लगती है, तब यह रोग बीपीएन (बेनिन प्रोस्टेट हाईपरप्लेसिया) कहलाता है। इसके आकार बढ़ने से मूत्रत्याग में बहुत कष्ट होता है।
लक्षण-बार-बार मूत्र त्याग करने जाना विशेषकर रात में 2-3 बार से अधिक जाना। मूत्रत्याग के बाद भी मूत्रत्याग की इच्छा करना। मूत्रत्याग के समय अत्यधिक जलन, पीड़ा होती है। पूरा मूत्र ठीक से नहीं निकल पाने के कारण इनफैक्शन हो जाता है। इससे जलन, कमर में दर्द आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। हालांकि इस रोग का स्पष्ट कारण ज्ञात नहीं। मगर यह व्याधि प्रायः बढ़ती आयु के साथ ही होती है और हार्मोनल असंतुलन इस रोग की उत्पत्ति का जनक माना जाता है।
जांच व निरीक्षण-
1. डिजिटल रैक्टल एक्जामिनेशन इस रोग की जांच का अच्छा उपाय है।
2. प्रोस्टेट स्पेशिफिक एंटीजिन अर्थात् पीएसए प्रोस्टेट ग्रंथि में ही उत्पन्न होता है। जैसे-जैसे प्रोस्टेट का साइज बढ़ता है पीएसए का लेवल बढ़ता जाता है।
3. इस व्याधि की जांच के लिए यूएसजी, यूरीन और सीटी यूरोग्राम की भी सलाह दी जाती। साठ की उम्र के बाद श्रेयस्कर होता है हम इन जांचों को करवाते रहें और रोग अपनी उग्रता तक न पहुंचे, अन्यथा कभी-कभी यह कैंसर का रूप भी धारण कर लेता है।
रोकथाम और उपचार
प्रोस्टेट ग्लैंड वार्धक्य से जुड़ा है, इसलिए इसमें आयुर्वेद के रसायनों जैसे महर्षि अमृत आदि का समय रहते ही सेवन करना शुरू कर देना चाहिए, ताकि वार्धक्यता के प्रभाव शरीर के विभिन्न अंगों और तंत्रों को कम से कम प्रभावित कर सकें। प्रोस्टेट के उपचार में आयुर्वेद की 'प्रोस्टोमैप' नामक औषधि काफी कारगर देखी गयी है। इस औषधि का सेवन करने वालों का मूत्र वेग और निष्कासन सुधर जाता है। जलन नहीं होती और न ही गैस बनती है। इसके अलावा प्रोस्टेट जितना बढ़ चुका है और उससे आगे नहीं बढ़ता। इसके अलावा कचनार गुग्गुल, वरुणादिवदी, चंद्रप्रभावटी, गोक्षुरचूर्ण भी कारगर है जिन्हें अनुभवी और कुशल वैद्य के परामर्श के बाद ही लेना चाहिए।
चक्की आसन, वज्रासन, सिध्दासन, द्रोणासन और धनुरासन आदि योगासन भी इस रोग की रोकथाम और उपचार में सहायक होते हैं।
(सुश्री शर्मा महर्षि आयुर्वेद आरोग्यकेन्द्र सेक्टर-29, नोएडा में वरिष्ठ आयुर्वेदिक फिजीशियन है)