
पांच साल में बनेगा नम्बर वन राज्य?
| | 2015-11-15T13:02:32+05:30
आज 15 नवम्बर को झारखंड के स्थापना दिवस पर इस राज्य का गठन हुए ठीक 15 वर्ष हो गये। दस से पन्द्रह...
आज 15 नवम्बर को झारखंड के स्थापना दिवस पर इस राज्य का गठन हुए ठीक 15 वर्ष हो गये। दस से पन्द्रह वर्ष के आयुवर्ग को किशोरावस्था कहा जाता है। इसके बाद तरुणाई आरम्भ हो जाती है, जब किसी किशोर में कुछ स्यानापन आने लगता है, वह अपना जीवन-मार्ग तय करने की ओर प्रवृत्त होता है, उसमें दायित्वबोध उत्पन्न होने लगता है और महत्वाकांक्षाएं भी जाग्रत होने लगती हैं, वह बड़े-बड़े सपने देखने लगता है। कुछ सपने व्यावहारिक लगते हैं, कुछ अव्यावहारिक। लेकिन अव्यावहारिक को व्यावहारिक और असंभव को संभव बनाना ही तरुणाई है, उठती जबानी है।
हमारे पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक, स्वप्नदृष्टा और युगदृष्टा एपीजे अब्दुल कलाम युवाओं को कहा करते थे कि आप सपने लीजिये, बड़े-बड़े सपने। फिर अपनी सारी शक्ति, अपने लक्ष्य की पूर्ति में झोंक दीजिये। सफलता अवश्य मिलेगी। वर्ष 2000 में जब झारखंड राज्य की स्थापना हुई थी तब इस नवगठित राज्य के लोगों में अपार उत्साह था। उनमें नयी आशाओं और उमंगों का संचार हो रहा था। एक लम्बे संघर्ष और प्रखर जनआंदोलन की कोख से उपजे इस नये प्रांत के लोगों को लग रहा था कि अब इस क्षेत्र का चौतरफा विकास होगा। 15 नवम्बर, 2000 का प्रातःकाल एक स्वर्णिम विहान की तरह लग रहा था। इक्कीसवीं सदी शुरू होने से पहले ही वर्ष 2020 तक भारत को विश्व की एक महाशक्ति बनाने का सपना देखने वाले, उसका रोड मैप बनाने वाले परिकल्पनाकार अब्दुल कलाम ने एकाधिक बार कहा था कि प्राकृतिक व खनिज सम्पदा से भरपूर झारखंड में इतनी अंतःक्षमता और संभाव्यताएं हैं कि यह देश का सबसे खुशहाल राज्य बन सकता है। लेकिन हमने पन्द्रह वर्ष का समय काफी हद तक व्यर्थ खो दिया।
राजनीतिक अस्थिरता के दौर
इस दौरान इस राज्य ने कुछ प्राप्ति की, विकास कार्य हुए। लेकिन प्रगति और विकास की दौड़ में यह राज्य अन्य राज्यों से पिछड़ता गया। पड़ोस में झारखंड के साथ ही अस्तित्व में आया झारखंड से मिलती-जुलती परिस्थितियों वाला नया राज्य छत्तीसगढ़ अनेक मामलों में झारखंड से आगे निकल गया। पन्द्रह वर्षों में वहां महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। उद्योगों के मामले में वह राज्य फल- फूल रहा है। राजनीतिक स्थिरता और योजनाबध्द विकास कार्यक्रमों के चलते वित्तीय प्रबंधन के मामले में छत्तीसगढ़ का प्रदर्शन बेहतरीन रहा। बिजली संकट से जूझने वाला वह राज्य अब अतिरिक्त बिजली उत्पन्न कर रहा है और दूसरे राज्यों को बिजली की आपूर्ति कर रहा है। साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में इसने नये-नये डग भरे हैं। लेकिन झारखंड इसमें फिसड्डी रहा। झारखंड आंदोलन का एक उद्देश्य अपनी अस्मिता और पहचान का परिरक्षण था। छत्तीसगढ़ में ग्रंथ अकादमी बने एक दशक से अधिक हो गया। अकादमी सैकड़ों किताबें छाप चुकी है। दूसरी ओर झारखंड में इसका विचार तक करने की कोई जरूरत नहीं समझी गयी। रायपुर में पहले से मौजूद पर्याप्त संरचनात्मक सुविधाओं के बावजूद उन्होंने रायपुर के निकट नयी राजधानी बना ली है जिसमें प्रशासनिक, आवासीय, व्यावसायिक और औद्योगिक सेक्टरों का विकास हो रहा है।
छवि पर आंच : झारखंड में वर्ष 2001 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने नयी राजधानी का मोरहाबादी मैदान की सभा में ऑन लाइन शिलान्यास किया था, लेकिन यह जल्द ही 'ऑफ लाइन' हो गया। नयी राजधानी तो बनी नहीं, उसकी फाइल जरूर बन गयी। अब फिर प्रक्रिया आरम्भ हुई है। उम्मीद की जाती है कि अब कार्य का श्रीगणेश होगा। आज झारखंड में बाहर से जब कोई व्यक्ति राज्य की राजधानी रांची में पहुंचता है तो यहां की चौपट ट्रैफिक व्यवस्था देखकर उसे गहरी ठेस लगती है। इसके साथ ही बिजली की आंख-मिचौनी भी बहुत कुछ उजागर कर देती है।
15 वर्षों मेें एक के बाद एक खंडित जनादेश के कारण दस गठबंधन सरकारें बनना और तीन बार राष्ट्रपति शासन लगना एक ऐसा रिकार्ड है जिसे कोई नया-पुराना राज्य कायम नहीं करना चाहेगा। लेकिन नयी सरकार की विशेषता यह है कि यह सरकार चुनाव-पूर्व एवं उपरान्त मिलकर बनाये गये गठबंधन की सरकार है जिसकी स्थिरता पांच वर्ष बने रहने की संभावना है। इसके साथ ही कोई आदिवासी ही मुख्यमंत्री बने यह प्रथा भी टूट गयी है। मोदी सरकार द्वारा ओडिशा की अपनी पार्टी की एक महिला आदिवासी नेता को राज्य का राज्यपाल बना देने से भावनात्मक संतुष्टि का माहौल बना है जो राज्य के लिए बड़ा हितकारी है।
नौकरशाही पर नियंत्रण : रघुवर दास के नेतृत्व में नयी सरकार पिछली सरकारों से काफी बेहतर ढंग से चल रही है। अल्प अवधि में ही कई क्षेत्रों में झारखंड की रैंकिंग में सुधार हुआ है। लेकिन जब तक ब्यूरोक्रेसी पर राजनीतिक पकड़ मजबूत नहीं होगी तब तक न तो कार्य-संस्कृति सुधरेगी और ना ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। इसके लिए राजनीतिक ईमानदारी, पारदर्शिता और साहस की जरूरत होगी। सभी राजनीतिक दलों को अपना व्यवहार दुरुस्त करना होगा। लोकतंत्र में विपक्ष को सरकार की आलोचना करने का पूरा अधिकार है, बल्कि यह उसका दायित्व है कि वह सरकार की गलतियों की ओर ध्यान आकर्षित करे। लेकिन विपक्ष का रवैया विध्वंसात्मक के बजाय रचनात्मक होना चाहिए। आज की परिस्थिति में झारखंड में किसी को यह नहीं पूछना चाहिए कि झारखंड उसके लिए क्या कर सकता है। पूछना यह चाहिए कि आप झारखंड के लिए क्या कर सकते हैं।
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि पांच वर्षों में झारखंड की तस्वीर बदल जायेगी और यह देश का नम्बर वन राज्य होगा। यह काम आसान नहीं है पर असंभव भी नहीं है। वस्तुतः यह तभी संभव है जब झारखंड के इस निर्माण-यज्ञ में सभी झारखंडवासी अपनी आहुति दें।