
परमावश्यक है मानसिक संतुलन बनाये रखना
| | 2016-01-13T09:46:06+05:30
वेदना दो प्रकार की होती है, शारीरिक और मानसिक। शारीरिक वेदना प्रगति में बाधक बन सकती है पर घातक...
वेदना दो प्रकार की होती है, शारीरिक और मानसिक। शारीरिक वेदना प्रगति में बाधक बन सकती है पर घातक नहीं। घातक बनती है मानसिक वेदना। अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां, उतार-चढ़ाव और घुमाव प्रत्येक व्यक्ति के जीवन पथ में आते हैं। दुर्बल मानस उनसे बहुत जल्दी प्रभावित हो जाता है। वह जरा सी अनुकुलता में प्रसन्न और प्रतिकूलता में खिन्न हो जाता है। दोनों परिस्थितियों में मानसिक संतुलन बनाए रखना अत्यंत अपेक्षित है। परिस्थिति विजय का सुन्दर उपक्रम है- उनसे ऊपर उठ जाना। यदि हम ऊपर उठ जायेंगे तो परिस्थितियों का प्रवाह नीचे से बह जाएगा। यदि हम उस प्रवाह में बैठ जायेंगे तो वह वहा ले जायेगा।
शान्ति किसी बाहरी साम्राज्य को जीतने से नहीं, आत्म साम्राज्य को पाने से उपलब्ध होती है।
सुख और दुख का मूल कारण स्वयं व्यक्ति ही होता है। उसकी नियंत्रित वृत्तियां जहां उसकी राहों में फूल बिछाती हैं, वहां अनियंत्रित वृत्तियां शूल बन कर उसके प्राणों में प्रतिरक्षण चुभन पैदा करती रहती हैं।
भगवान महावीर ने एक आध्यात्मिक औषधि अवश्य बताई है जिसके सेवन से व्यक्ति क्षण भर में अनगिनत मनोव्याधियों से छुटकारा पा सकता है। उस दिव्य औषधि का नाम है 'समता' ।
विषम मन के धरातल पर ही दुखों का अंकुरण होता है। उन अंकुरों से विक्षोभ, व्याकुलता, दुराग्रह, प्रतिशोध आदि के फूल खिलते हैं और पुन: फलते हैं अनेक प्रकार की समस्याओं के विषैले फल। समता एक ऐसा रसायन है, जिसके छिड़काव से उन विषैले पौधों का समूल उन्मूल हो सकता है। मेधावी व्यक्ति उस रसायन से मानसिक विक्षोभ या लक्ष्य के प्रति होने वाले अनास्थाभाव के अंकुरों को पनपने से पहले ही समाप्त कर देता है।
कोई भी व्यक्ति यदि अशान्त होता है तो वह अपने ही चिंतन और गलत कार्यों से होता है। इसके विपरीत जिसके मन में समत्व प्रतिष्ठित हो जाता है, उसके पांव कभी गलत दिशा में नहीं उठते। उसके हाथ कभी गलत कार्यों में संलिप् नहीं होते।
विषमताओं के तूफान से जब जब जीवन नौका विपदाओं के अन्तहीन सागर में डूबने लगे तब तब यदि हम उस नौका के मस्तूल पर प्रसन्नता की पताकाएं फहरा दें और समता की लंगर डाल दें तो निश्चय ही हमारा जहाज सुरक्षित रह जाएगा और हमारा जीवन समाप्त होने से उबर जाएगा।
सचमुच समता एक ऐसा लंगर है जो हर परिस्थिति में हमारे जीवन जहाज को संतुलित और नियंत्रित रख सकता है। उसका प्रयोग हम चाहे कितनी बार करें, वहसमाप्त नहीं होगा।
इन सुख शय्याओं में सोने वाले व्यक्ति काल्पनिक या अतृप्त वासनाओं के कारण उभरने वाले सपनों में नहीं खोते, अपितु दिव्य लोक में विहार करते हैं, जहां सर्वत्र आनन्द बिखरी पड़ा है।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ (जय फीचर्स)