
धरती का अमृत गोदुग्ध
यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया कि धरती पर अमृत क्या है? युधिष्ठिर ने जवाब दिया- धरती पर अमृत गाय...
यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया कि धरती पर अमृत क्या है? युधिष्ठिर ने जवाब दिया- धरती पर अमृत गाय का दूध ही है। यह निर्विवाद सत्य है कि गाय के दूध में अमृत तुल्य गुण हैं। यह जीवनीशक्ति बढ़ाता है, रोग मुक्त करता है, पोषक गुणों से भरपूर है। कम गलाई (वसा) होने से पचने में सरल है, हृदय रोग आदि का खतरा नहीं रहता है। केवल एक बार उबला हुआ दूध पीना स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है।
आयुर्वेदिक मत- गाय का दूध बलवर्ध्दक, कब्जनाशक, वात-पित्त नाशक, कफकारक, हृदय के लिए हितकारक, अग्नि-प्रदीपक (भूख बढ़ाने वाला), वात और पित्त का नाश करता है। बुढ़ापे से बचाता है। काली गाय का दूध वातनाशक, पीली गाय का दूध पित्तनाशक और वातनाशक तथा सफेद गाय का दूध कफकारक, लाल एवं चितकबरी गाय का दूध वातनाशक माना गया है। गाय का दूध शारीरिक एवं मानसिक रोग दूर करता है। उबले हुए दूध को गुनगुना रहे। तब पीने से वायु एवं कफ नष्ट होता है तथा ठंडा करके धीरे-धीरे पीने से पित्त को नष्ट करता है।
एक ग्राम गाय के घृत से हवन करने पर एकटन प्रदूषित वायु की शुध्दि होती है। संक्रामक रोगों के सूक्ष्म कीटाणुओ को नष्ट करने में तथा पर्यावरण की रक्षा में गोघृत का महत्व विज्ञान ने भी स्वीकार किया है। गाय के दूध में दुर्लभ विटामिन बी-12 होता है जो मस्तिष्क एवं स्ायुओं के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है।
दूध के औषधीय घरेलू प्रयोग-
(1) सिरदर्द- गोदुग्ध के साथ सोंठ को पत्थर पर घिसकर माथे पर लेप लगाने से सिरदर्द दूर होता है।
(2) हिचकी- गोदुग्ध उबालकर 5 ग्राम अदरक के रस के साथ सेवन करने से हिचकी बन्द होती है।
(3) मूत्र में रूकावट- एक गिलास गोदुग्ध को गरम कर उसमें 3 ग्राम गोघृत डालकर मिसरी मिलाकर अच्छी तरह फेंटकर पीने से लाभ होता है।
(4) थकावट में- शारीरिक परिश्रम या मानसिक थकान को दूर करने के लिए गरम दूध पीने से लाभ होता है।
(5) बच्चों के कुपोषण में- जो बच्चे मां का दूध नहीं पी रहे हैं उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए नियमित गाय का दूध सुबह-शाम पिलाना चाहिए। दूध पीने के बाद संतरा या मौसम्मी का रस मिलाना अस्थि-विकास के लिए हितकारी होता है।
(6) अम्लपित्त (हाइपर एसिडिटी)- अम्लपित्त भाग-दौड़, तनाव, चिंता तथा मिर्च-मसाले तथा तले आहार का परिणाम है। शांत, प्रसन्न रहकर धैर्यशील बनकर सादा-सुपाच्य भोजन करें। भोजन ठीक तरह खूब चबा-चबाकर करना चाहिए। तले खाद्य पदार्थ तथा आधार, गरम मसाले, मिर्च एवं अधिक खट्टे खाद्य पदार्थों से परहेज रखें। मीठे फलों का सेवन, ठंडे किए दूध का सेवन 3-3 घंटे में करें। 2 माह तक भोजन के रूप में दूध के साथ रोटी का या दूध के साथ दलिया का ही सेवन करने से भी अति अम्लता से बचाव होता है। खजूर, मुनक्का, अंजीर, केला, पपीता, चीकू, सीताफल, मीठे आम का सेवन करना चाहिए।
(7) मोच एवं अस्थि टूटने पर- गोदुग्ध के साथ 5 ग्राम अर्जुन चूर्ण तथा 1 ग्राम हल्दी नियमित सेवन करने से अस्थि जुड़ने में सहायता मिलती है। दूध में चीनी के स्थान पर गुड़ या खजूर मिलाकर सेवन करना चाहिए। चीनी सेवन से कैल्शियम की कमी हो जाती है। अतः चीनी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(8) सुजाक (गर्मी)- 200 ग्राम कच्चे दूध में 100 ग्राम मात्रा में पानी मिलाकर मिसरी मिलाकर खूब अच्छी तरह फेंटकर नित्य पीने से लाभ होता है। गाजर का रस गुनगुने दूध के साथमिलाकर ले सकते हैं।
(9) त्वचा रोग- सर्दी के दिनों में चेहरा तथा हाथ की त्वचा फटने लगती है। दूध की मलाई को चेहरे पर तथा हथेलियों और हाथ के पृष्ठ भाग पुर गोदुग्ध मलाई लगाने से त्वचा कांतिमान एवं स्वस्थ बनी रहती है।
(10) चेहरे का कालापन होने पर- चेहरे का धूप के कारण कालापन दूर करने के लिए कच्चे दूध को रूई के सहारे चेहरे पर मलकर आधा घंटे बाद चेहरा पानी से धो लेना चाहिए।
(11) बवासीर- आधुनिक जीवनशैली के गलत आहार-विहार के दुष्परिणामस्वरूप यह रोग बढ़ रहा है। मिर्च तथा गरम मसालों का प्रयोग करने से तथा मैदा, बेसन, चीनी तथा तले खाद्य पदार्थों के कारण कब्ज होने से यह रोग पैदा हो रहा है।
एक गिलास कच्चा गोदुग्ध लेकर प्रातः खाली पेट हों, तब प्रतिदिनि 10 दिनों तक कच्चे गोदुग्ध को एक-एक घूंट पीते रहें तथा एक हाथ में नींबू की एक फांक लेकर नींबू भी चूसते रहें। इसके बाद एक घंटे तक कुछ न खाएं- पीएं। यह प्रयोग खुशी तथा बादी बवासीर से मुक्ति दिलाता है।
(12) प्रदर (रोग) ल्यूकोरिया- अच्छी तरह पका एक चित्तीदार केला छीलकर एक चम्मच (5 ग्राम) गोघृत के साथ सुबह-शाम सेवन करने से कुछ ही दिनों में लाभ होता है। पूर्ण रोगनिवृत्ति के लिए संयमित जीवनचर्या, सात्विक सादा भोजन अपनाएं। चाय, काफी, मिर्च एवं गरम-मसालों से परहेज रखकर फल तथा हरी सब्जियों एवं सलाद का सेवन अधिक करें।
(13) ज्वर- बुखार की अवस्था में दूध नहीं देना चाहिए परन्तु गोदुग्ध को फाड़कर (दूध में नींबू निचोड़ देने से दूध फट जाता है) छान लें। इसे छेने का पानी कहते हैं। यह फटे हुए दूध का पानी उत्तम पथ्य है। इसे बुखार के रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
(14) आधा शीशी- प्रातः सूर्योदय के पूर्व 200 ग्राम गोदुग्ध को गरम कर गरम जलेबी (घृत से बनी) को दूध में डुबो-डुबोकर पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके खाने से लाभ होता है। यह प्रयोग कुछ दिनों तक जारी रखें। (यह सूर्योदय के पूर्व ही प्रयोग करें)
(15) कब्ज- शाम को गरम गोदुग्ध में 3 ग्राम ईसबगोल की भूसी मिलाकर पीने से कब्ज निवारण होता है। स्ायु सक्षम बनाने के लिए संतुलित श्रम एवं संतुलित गहरी निद्रा भी जरूरी है।
(16) मूत्र की जलन में- यह गरमी का रोग है। उष्ण प्रकृति के खाद्य, तले खाद्य, मिर्च-मसालों की अधिकता, चाय, काफी आदि गरम प्रकृति के पेय बंद कर देना चाहिए। आवश्यक परहेज करते हुए 100 ग्राम कच्चे गोदुग्ध में समान मात्रा में पानी मिलाकर देशी खांड या मिश्री मिलाकर लस्सी बनाकर दिन में 3 बार पीने से लाभ होता है।
(17) नेत्र रोगों में- आंखों की जलन, चुभन, लालिमा या किरकिरापन होने पर या चोट लगने पर रूई को गोदुग्ध में भिगोकर आंखों पर रखें। 1-2 बूंद दूध आंखों में डालें।
(18) पैरों की बिवाई फटने पर- रात्रि को पैरों को 10 मिनट तक गरम पानी में रखें तथा अच्छी तरह साफ पानी से धोकर गोघृत में हल्दी एवं सेंधा नमक मिलाकर बिवाइयों में भरकर मोजा पहनकर रखें।
(19) आमाशय के अल्सर में- अल्सर के रोगी को मन शांत रखना चाहिए। आहार में केवल ठंडा किया हुआ दूध धीरे-धीरे घूंट-घूंट कर पीना चाहिए। हर 2 घंटे में गोदुग्ध का सेवन करें। नमक, मिर्च तथा ठोस पदार्थ पूर्ण लाभ होने तक न लें। मीठे फलों का रस सेवन कर सकते हैं।
(20) स्मरण शक्ति की कमी में- 5 नग बादाम मिंगी पानी में 12 घंटे भिगोकर प्रातः बादाम का छिलका हटाकर पीस लें तथा गोदुग्ध में 2 से 3 कालीमिर्च पीसकर मिला दें, मिसरी मिलाकर दूध को अच्छी तरह फेंटकर नित्य प्रातः पीने से स्मरण शक्ति तथा नेत्रओं की शक्तु बढ़ाती है।
(21) त्वचा के जलने एवं कटने पर- गोघृत एक उत्तम एेंटिसेप्टिक मलहम का कार्य करता है। त्वचा के जलने तथा कटने पर गोघृत को मलहम की तरह लगाना चाहिए।