
धन वैभव से मूल्यवान है मानसिक शांति
| | 2016-01-14T09:58:32+05:30
उसके पास सब कुछ है। आलीशान कोठी, देश-विदेश में सुख-सुविधाओं से पूर्ण एयरकण्डीशन्ड बंगले, शानदार...
उसके पास सब कुछ है। आलीशान कोठी, देश-विदेश में सुख-सुविधाओं से पूर्ण एयरकण्डीशन्ड बंगले, शानदार कीमती गाड़ियां, दुनिया की सैर के लिए निजी वायुमान, बटन दबाते ही हाजिर होने वाले सभी श्रेणियों के सेवक, बड़े-बड़े कल-कारखानें, ऐश्वर्य, स्वर्गिक सुख उपलब्ध कराने वाले समस्त साधन। बस एक ही अभाव उसे हर समय खटकता है- मानसिक शान्ति का अभाव।
मानसिक शान्ति पाने के लिये उसने न जाने कितने साधु-महात्माओं की चरण सेवा की। यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ, तीर्थाटन, सब करके देखा, किन्तु हर प्रयास व्यर्थ सिध्द हुआ।
महात्मा ने पलकें खोलीं। आगन्तुक पर दृष्टि पड़ते ही उनके होठों पर एक सुरल मुस्कान उभर आई। उन्होंने आगन्तुक से उसका परिचय और आने का प्रयोजन पूछा।
सम्पन्न व्यक्ति उलझन में पड़ गया। उसने आश्चर्य से पूछा- आखिर यह कौन सा मार्ग है, जिसे जानते हुए भी मैं उसकी खोज में भटक रहा हूं?
महात्मा ने कहा- तुम्हारी आंखों पर लोभ, स्वार्थ, मोह, संचय की प्रवृत्ति और झूठी शान, प्रतिष्ठा का दिखावा करने की भावना का पर्दा उड़ा हुआ है। जब तक वह हटेगा नहीं, तब तक तुम्हें शान्ति का मार्ग नहीं दिखाई पड़ सकता।
सम्पन्न व्यक्ति को महात्मा के शब्दों ने जैसे झकझोर दिया। उन्होंने एक और प्रश्न किया। अच्छा यह बताओ, यदि एक ही भोजन पत्तल में और सोने-चांदी के बर्तनों में परोसा जाय तो क्या उसका स्वाद बदल जायेगा? शादी-विवाह, जन्म-दिवस नाना प्रकार के पारिवारिक और सामाजिक उत्सवों पर जो फिजूलखर्ची होती है, सम्पन्नता का प्रदर्शन होता है, क्या इससे किसी असाधारण सम्मान या सामाजिक प्रतिष्ठा को उपलब्धि होती है? जरा सोचो, यह सब करके, क्या तुमने धन का दुरुपयोग नहीं किया है, क्या इससे तुम्हें मानसिक शान्ति मिल गई है?
सम्पन्न व्यक्ति का सिर झुक गया। वह निरुत्तर था। उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी कांच जैसी भ्रांत धारणा किसी पत्थर से टकराकर चूर-चूर हो गई हो।