
थायराइड के बारे में जानिये
हृदय रोग व डायबिटीज के बाद सबसे बड़ी संख्या में होने वाला रोग है थायराइड। इस बीमारी के लक्षणों को...
हृदय रोग व डायबिटीज के बाद सबसे बड़ी संख्या में होने वाला रोग है थायराइड। इस बीमारी के लक्षणों को इतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता, क्योंकि ये लक्षण आयु बढ़ने के साथ व रजोनिवृत्ति के समय ही पाये जाते हैं। इसी कारण सेइस बीमारी के होने का पता नहीं चल पाता। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में थायराइड रोग अधिक देखने को मिलता है। थायराइड एक छोटा सा ग्लैंड होता है जो गले में सांस की नली के ऊपर स्थित होता है। यह ग्लैंड तितली के आकार का होता है। इसका कार्य रक्त में से आयोडीन को लेना है जिससे यह दो हार्मोन थायरोक्सीन और ट्रायाडोथायरोनाइन उत्पादित करता है। ये हार्मोन शरीर के हर हिस्से व हर सेल को एनर्जी पहुंचाने में नियंत्रण का कार्य करते हैं। जब यह ग्लैंड काम करना बन्द कर देता है या आवश्यकता से अधिक कार्य करता है तो समस्या होती है। अधिकतर रोगियों में हायपोथायराइड पाया जाता है। इसके होने के कारण हैं भोजन में आयोडीन का अभाव। इसका एक और कारण है आटो इम्यून डिसर्डर। इसको हाशिमोटो रोग भी कहा जाता है। यह नाम एक जापानी विशेषज्ञ के नाम से पड़ा है जिन्होंने 112 में पहली बार इस रोग को पहचाना। कई बार यह रोग महिलाओं में बच्चा पैदा होने के पश्चात् भी हो जाता है परन्तु यह अस्थायी होता है व इसके लिए किसी इलाज की जरूरत नहीं पड़ती है। अधिक से अधिक इलाज के लिए महिला को थायराइड हार्मोन लेना पड़ता है। इसके अतिरिक्त हाइपोथायराइड का कारण वायरल बुखार, रेडिएशन थेरेपी या कुछ दवाइयां जैसे लीथियम, हृदय रोगों में ली जाने वाली दवाइयां एमीयोड्रोन आदि हो सकती है। रेडियेशन थेरेपी सिर या गले के कैंसर की संभावना को अधिक करती है। कारण कोई भी हो परन्तु इसके कारण चेहरे पर सूजन, वजन बढ़ जाना थकना, सर्दी लगना, एकाग्रता कम होना आदि समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। कभी-कभी तो यह रोग होने पर त्वचा रूखी, नाखूनों का जल्दी टूटना, बालों का झड़ना, बाल गिरना, मांसपेशियों में दर्द, कब्ज, हृदय गति का धीमा होना आदि लक्षण पाये जाते हैं। इसके कारण महिलाओं में मासिक स्राव बहुत अधिक व समय से अधिक होता है। अगर इस रोग का सही समय पर इलाज न किया जाए तो महिला को गर्भपात, समय पूर्व प्रसव व गर्भधारण में कठिनाई हो सकती है। इस रोग से डिप्रेशन की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। अमेरिका में हुए एक शोध के अनुसार मानसिक तनाव का संबंध थायराइड हार्मोंन का कम उत्पादित होना है परन्तु डिप्रेशन के रोगी थायराइड परीक्षण नहीं कराते जिससे इस रोग का पता नहीं चल पाता। सही इलाज के द्वारा इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है परन्तु इसमें समय लगता है। अगर यह थायराइड हार्मोन अधिक हो तो ओस्टिपोरोसिस, हड्डी टूटने की संभावना अधिक हो जाती है। इसके इलाज में थायराइड हार्मोंन दवा दी जाती है परन्तु कभी-कभी दवा की अधिक मात्रा लेने से हाथों का कांपना, हृदय गति तेज होना आदि समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। ऐसा होने पर तुरन्त डाक्टर को दिखाएं ताकि वह दवा की सही मात्रा का निर्धारण कर सके। अगर हाइपोथायरॉइड का इलाज नहीं किया जाये तो हाइपोथायराइड की समस्या हो सकती है। इस रोग के इलाज में सबसे जरूरी है सही मात्रा में दवा लेना। दवा की अधिक मात्रा या कम मात्रा अन्य समस्याएं उत्पन्न कर सकती है। हाइपरथायराइड का कारण भी आटोइम्यून डिसआर्डर है जिसे ग्रेवस रोग के नाम से जाना जाता है। यह नाम एक आयरिश विशेषज्ञ के नाम से दिया गया है जिसने सर्वप्रथम इस रोग के लक्षणों को पहचाना। इस रोग के होने के लक्षण हैं घबराहट, चिड़चिड़ापन, हृदयगति का तेज होना, अधिक पसीना आना, मांसपेशियों का कमजोर होना, नाखूनों का कमजोर होना, वजन कम होना, बालों का गिरना और महिलाओं को कम मात्रा व कम समय में रक्तसाव होना आदि। इस रोग से पीड़ित कई लोगों में आंखों की बीमारियां भी हो जाती है जैसे आंखें लाल होना, खुजली होना, आंखों में सूजन आदि। इस रोग के इलाज में विभिन्न तरीकों को अपनाया जाता है जैसे दवाइयां जिससे हार्मोन के उत्पादन को रोका जा सके या सर्जरी का प्रयोग करके ग्यॉटर को निकाल दिया जाता है। यह सर्जरी आमतौर पर आसान व सुरक्षित होती है। थायराइड रोग का पता खून के परीक्षण से चलता है। डाक्टर उन लोगों को थायराइड का परीक्षण कराने की सलाह देते हैं जिन्हें थकान आदि होने की लगातार शिकायत रहती है। यदि आपको भी यह समस्याएं हैं तो डाक्टर से परामर्श करके उचित इलाज कराएं।