
झारखंड में पलास के फूलों व आम के मंजर की बहार
झारखंड में आम के पेड़ों पर मंजर की बहार है। आईसीएआर के वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि मौसम का हाल...
झारखंड में आम के पेड़ों पर मंजर की बहार है। आईसीएआर के वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि मौसम का हाल ठीक-ठाक रहा तो राज्य में इस बार आम की अच्छी फसल होगी। आम के मंजर खुशबू तो फैला ही रहे हैं साथ-साथ पलास के फूलों ने होली आने का स्वागत कर दिया है।
झारखंड के राज्यफूल ने बसंत पंचमी में ही पतझड़ की दस्तक देकर अपनी सौंदर्य का बोध कराना शुरू कर दिया है। राज्य के जंगलों एवं कई हिस्सों में पलाश के पेड़ पलाश के फूलों से लहलहा रहे हैं। पलाश के फूलों की बहार ने केवल झारखंड बल्कि कई राज्यों बल्कि विदेशों में भी रहती है और सभी जगह पलाश की अलग-अलग मान्यता है। झारखंड में पलाश का फूल लोक परम्परा से जुड़ा है। इसे यहां के लोग जंगल की आग कहते हैं। झारखंड के जंगलों में जब पतझड़ आता है और उसके बाद पलाश के पेड़ों पर पलाश के फूल अच्छादित होते हैं तो अद्भुत वातावरण बन जाता है। जब पलाश अपने सबाब में होता है तो उसकी खूबसूरती देखते बनती झारखंड के गांवों में पलाश के फूलों से रंग बनाने की पुरानी परम्परा रही है। पलाश के फूलों को गर्म पानी में खौलाकर रंग बनाया जाता है और इस रंग से होली खेलने का मजा कुछ और ही होता है। जिस तरह जम्मू-कश्मीर में चिनार के पेड़ों का महत्व है उसी तरह झारखंड में पलाश के पेड़ों का महत्व है। कहीं-कहीं इसे पैरोट पेड़ भी कहा जाता है। पलाश के फूल का स्वरूप कभी तोते जैसा भी नजर आता है। कहा जाता है कि पलाश के पेड़ आग्न का रूप में कहा जाा है कि पार्वती ने पलाश ने उनकी और भगवान शिव की निजी क्षणों में बाधा पहुंचायी थी जिसके कारण उन्होंने उसे दंडित किया था। शिवरात्रि के अवसर पर तेलंगाना में पलाश के फूलों से भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। कहते है कि भगवान बुध्द का भी पलाश के फूलों से संबंध था।
पलाश के पेड़ों से निकलने वाले गम का कई तरह से उपयोग किया जाता है। कई व्यंजनों में भी इसका उपयोग किया जाता है परन्तु जानवर पलाश नहीं खाते। पलाश के फूलों का उपयोग कपड़ों को रंगने में भी किया जाता है। झारखंड की पहचान पलाश के फूलों से भी होती है।