
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई बनेंगी कंगना
अन्तत: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर लेखिका फिल्म निर्मात्री दीपा साही-निदेशक केतन मेहता फिल्म बनाने...
अन्तत: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर लेखिका फिल्म निर्मात्री दीपा साही-निदेशक केतन मेहता फिल्म बनाने की जंगी कार्यवाही में लगे हैं। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की मिथकीय महानायिका झांसी की रानी आमजन के हृदय में अमर हैं। निर्मात्री दीपा साही ने घोषणा की कि अभिनेत्री कंगना रनौत झांसी की रानी के अवतार में होंगी। कंगना रनौत उम्र, कद काठी और व्यवहार से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका के लिए खरी उतरती हैं। रानी लक्ष्मीबाई के किरदार के लिए कंगना रनौत सबसे उपयुक्त है। हाल ही प्रसारित दो फिल्मों क्वीन, तनुरेड्स मनु रिटर्न की अभूतपूर्व सफलता से कंगना रनौत बालीवुड की महानायिका के नये रूप में सामने आई है। कंगना रनौत की अभिनय प्रतिभा ने विश्व स्तर में पर नवकीर्तिमान स्थापित किए।
रानी लक्ष्मीबाई के किरदार निर्वहन के लिए अभिनेत्री सुष्मिता सेन, रेखा, प्रियंका चोपड़ा आदि भी इच्छुक रही थी। पूर्व विश्व सुंदरी सुष्मिता सेन स्वयं को रानी लक्ष्मीबाई के व्यक्तित्व के बहुत ही निकट अनुभव करती रही। महानायिका रही रेखा फिल्म फूल बने अंगार में अंतिम दृश्य में घोड़े पर सवार रानी झांसी के रुपाकार में बनाते रहे। महान महिला कवि सुभद्राकुमारी चौहान ने 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसीवाली रानी' कविता से रानी लक्ष्मीबाई को देहातों तक में अमर किया। अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संगठन के पूर्व महामंत्री दलजीत सेन अदल के अनुसार रानी झांसी को ग्वालियर के किले के दरवाजे के बाहर जलाकर मारा गया। झांसी की रानी की मौत को लेकर अनेक वर्णन मिलते हैं। साम्यवादी झुकाव के इतिहासकारों ने झांसी की रानी को लेकर विरोधाभासी साक्ष्य दिए। वामपंथी इतिहासकारों की शोध को अन्यों ने खारिज किया। यह भी अनुत्तरित है कि सन् 1857 के सेनानियों का प्रमाणिक इतिहास वर्षों, किसके दबाव में नहीं लिया गया? यह बहुत ही आश्चर्यजनक है कि झांसी की सेनानी लक्ष्मीबाई का वास्तविक नाम मणिकर्णिका भारद्वाज था। यह बहुत शर्मनाक है कि ब्रिटिश भारत में अंग्रेज परस्तों में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र को गलत तरीके से पेश कर 'सूर्य को आईना दिखाने का प्रयास किया।' एक समय आठवीं कक्षा तक सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता हर छात्र छात्रा की जुबान पर थी। स्वतंत्रता दिवस-गणतंत्र दिवस की झांसी की रानी की भव्य झांकी निकलने का प्रचलन था। विद्यार्थियों में लक्ष्मीबाई बनने की प्रतिस्पर्धा रहती थी। स्वाभाविक रूप से रानी लक्ष्मीबाई की कथा फिल्मी संसार को चुम्बकीय आकर्षण से सम्मोहित करती रही है। निर्मात्री दीपा साही का मानना है कि हमारे यहां इतिहास को पांच पंक्तियों में समेटने का गलत चलन है। वे रानी लक्ष्मीबाई फिल्म की कथा लिख रही हैं। साही का कहना है कि हर फिल्म बनने का एक समय आता है। पहले भी हमन रानी लक्ष्मीबाई पर फिल्म निर्माण का विचार किया। फिल्म के धनकुबेरों का एक ही प्रश्न होगा कि नायक कौन है? मैंन फिल्म निर्माण के प्रस्ताव भारत और विदेशों में भेजे। ब्रिटेन से उत्साहवर्धन उत्तर आया। पर उनका प्रश्न यही रहा कि भारतीय भागीदार कौन है?
महानायिकाओं का युग
वर्तमान में कंगन रनौत फिल्मी दुनिया की सुविख्यात महानायिका के रूप में में स्थापित हैं। अत: फिल्म की नायक ही कंगना है। फिल्मी जगत ने यह स्वीकारा है कि महिला महानायिका केन्द्रित फिल्म बड़े बजट को देनेवाली सिध्द हो सकती है (बालीवुड में प्रियंका चोपड़ा की सात खून साफ, बर्फी, मैरी कॉम आदि ने झण्डे गाड़े। अभिनेत्री रेखा ने उमराव जान, खून भरी मांग, फूल बने अंगारे, खूबसूरत, आस्था, मैडम एक्स आदि से महानायिकाओं के नये युग का सूत्रपात किया)। बॉलीवुड में अनेक नायिकाओं ने सिध्द किया कि उनके कंधों पर फिल्म चल सकती हैं गुलाबी गैंग में वर्षों बाद एक समय की महानायिका माधुरी दीक्षित योध्दा के रूप में प्रकट हुई।) साही ने रहस्योद्धाटन किया कि उनकी कथा इतिहास की एक पंक्ति से उपजी। सर हूग रोज ने तत्कालीन झांसी रियासत के किले पर घेरा डाला। रानी लक्ष्मीबाई किले की प्राचीर पर निरीक्षण रत थी। उन्हें गोली से उड़ाया जा सकना संभव था। सेनापति सर हूग रोज ने उनके सहायक ने पूछा की क्या गोलाबारी की जाए? सेनापति सर हूग का उत्तर था कि नहीं। इसकी जानकारियां मंत्रमुग्ध करनेवाली थी। इसे बस चन्द पंक्तियों में जगह मिली। साही रानी लक्ष्मीबाई कथा को बुन्देलों के झांसी में ही फिल्मांकन करना चाहती हैं। बुन्देलखण्ड में सदियों से बड़े लड़ैय्या मोहबेवाले जिनकी जाच बनाफर राय वाले आल्हा गांव गांव में गाया जाता है। साही और केतन मेहता की योजना रानीलक्ष्मीबाई के झांसी के ग्वालियर तक जाने के मार्ग की तलाश की है। इतिहासकार लिखते हैं कि झांसी पर ब्रितानी फौज की घेराबंदी को तोड़कर रानी लक्ष्मीबाई चुनिन्दा शेरदिल महायोध्दाओं के साथ ग्वालियर की तरफ रवाना हुई। रानी झांसी की पीठ पर उनका नन्हा उत्तराधिकारी बंधा था। रानी लक्ष्मीबाई की बिजली की चमकती तलवार महाकाली के रूप में अंग्रेज सेना के रक्त की प्यासी थी। रानी लक्ष्मीबाई के रौद्र रूप से अंग्रेजी सेना कांप उठी। अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनान संघ ने रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा से उनके शिशु के गायब होने को दुखद बताया था। साही रानी लक्ष्मीबाई के मृत्यु प्रसंग को लेकर भावुक हैं। उनके अनुसार वे उनके मन को भा जाने वाले अन्त को चित्रित करेंगी। यशस्वी सुभद्रा कुमारी चौहान की रानी झांसी काव्य 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसीवाली रानी' देश-काल के अनुसार समयानुकूल रही। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने युध्द कौशल से पुरुष महायोध्दाओं के समकक्ष अपना नाम स्थापित किया। रानी लक्ष्मीबाई की पीड़ा और फिर तत्काल सम्हलकर युध्द की रणभेरी बजाना अद्भुत घटना रही। उनके द्वारा अंग्रेजी के घेरे को तोड़कर सीधे संग्राम उन्हें बाहुबली सिध्द करता है।