
जिहाद के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी
| | 2016-02-16T09:44:52+05:30
जिहाद एक प्रकार से सोने के अण्डे देने वाली मुर्गों की भांति पाकिस्तान में बहुत तेजी से पनप रहा है।...
जिहाद एक प्रकार से सोने के अण्डे देने वाली मुर्गों की भांति पाकिस्तान में बहुत तेजी से पनप रहा है। मिली जानकारी के अनुसार जिहाद को जिंदा रखने के लिए विदेशी चंदा और घरेलू धन के साथ पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी और पाकिस्तानी सेवानिवृत्त सैनिक अधिकारियों को पाकिस्तान के रक्षा विभाग से भी भारी रकम मिल रहा है। ऐसे फंडों का न तो कोई हिसाब-किताब रखा जाता है न ही इनका कोई आडिट होता है। इसमें कितना बड़ा घोटाला है इसके विरुध्द कोई आवाज उठाने वाला नहीं है। पाकिस्तान को प्रसिध्द पत्रिका 'हैरल्ड' ने यह खुलासा किया है कि इन फंडों का प्रयोग भारत में आतंकी कार्रवाईयों को तेज करने में होता है।
सूत्रों से मिला जानकारी के अनुसार सामान्य आतंकवादयों की टीम में दो से तीन गाईड 10 से 12 कुली और 5 से 10 फाइटर होते हैं। पाकिस्तानी कट्टरपंथी और आतंकवादी संगठन उनको भर्ती करते हैं फिर सेना द्वारा उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है। सेना की मैस से ही उन्हें राशन इत्यादि दिया जाता है। इसके पश्चात दूसरे चरण में उन्हें पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आई.एस.आई. को सौंपा जाता है जो उन्हें संचार उपकरण, और आधुनिक शास्त्रों से लैस करती है। अंत में आतंकी टीम को पाकिस्तानी आर्मी पोस्ट पर तैनात किया जाता है जहां उसे भारतीय सीमा में घुसपैठ करने के लिए आदेश दिए जाते हैं।
मिली जानकारी के अनुसार आतंकवादी गुट में गाइड को सबसे ज्यादा रकम अदा की जाती है। जो प्रथम गाइड होता है उसकी जान को सबसे ज्यादा खतरा होता। इसी प्रकार दूसरा गाइड, तीसरा गाइड, आतंकवादी गुट में संचार का साधन बनता है। सभी सूचनाएं प्रथम गाइड के साथ-साथ कुलियों और फाइटर तक पहुंचाये जाते हैं। गाइड प्रति ट्रिप के लिए 50 हजार रुपये की राशि लेते हैं जिसमें ज्यादा रकम प्रथम गाइड के हिस्से में आती है। गाइड इस प्रकार से राशि का बंटवारा करते हैं प्रथम गाइड 25 हजार दूसरा गाइड 15 हजार और तीसरा गाइड 10 हजार। इसी प्रकार प्रत्येक कुली को 10 किलोग्राम का भार उठाने के लिए 25 हजार रुपये दिए जाते हैं।
10 किलोग्राम भार में अति आधुनिक विस्फोटक पदार्थ, राकेट लॉचर, ग्रेनेड, ए.के. 47 और असला वगैरह होते हैं। यह सभी एक बैग में बंद होते हैं। उन्हें एक फिट भी दी जाती है जिनमें गर्म अंडर गारमेंट, गर्म यूनिफार्म, गर्म जुराबे, एक पाकेट रेडियो, काले रंग की विशेष लाठी जिससे माइंस का पतला चल सके इत्यादि दी जाती है।
ऐसी ही एक किट गाइड्स को भी दी जाती है। इसके अतिरिक्त एक पिस्तौल, तीन मैगजीन, नाइट विजन चश्मे, एक रस्सी, एक वायरलैस सेट इत्यादि दिए जाते हैं।यह बात उल्लेखनीय है कि कुलियों और गाइड की भर्ती पाकिस्तानी कश्मीर से की जाती है। उनका फिजिकल मेडिकल टेस्ट भी लिया जाता है और कई-कई दिनों तक सामान देकर पहाड़ों में चढ़ने की विशेष ट्रेनिंग भी दी जाती है। अभी भी पाकिस्तानी कश्मीर के लीमा सेक्टर में 100 से ज्यादा नौजवानों को 7 महीने से ट्रेनिंग दी जा रही है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 125 गाइडों को 120 दिन की ट्रेनिंग देने पर 84.6 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसी प्रकार 100 कुलियों को भी 120 दिन की सख्त ट्रेनिंग पर 144 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं। आतंकी संगठन केवल एक सेक्टर में जिहादी लोगों को ट्रेनिंग देने में 228.6 लाख रुपये प्रति सीजन खर्च कर रहे हैं।
जिहादियों की भर्ती
सूचनाओं के अनुसार पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन अपने जिहादी गुटों के जरिए 1,96,000 किलोग्राम शस्त्र और बारूद नियंत्रण सीमा के पार भारत में भेजने में सफल रहे। कई कुलियों को केवल 15 हजार रुपये दिए गए लेकिन कइयों को 10 हजार रुपये। उल्लेखनीय है कि आई.एस.आई. के अधिकारी उनसे पहले ही 25 हजार की रसीद ले लेते हैं। आई.एस.आई. के अधिकारी प्रतिदिन 2 लाख रुपये, दो नम्बर में कमा रहे हैं।
प्रत्येक वर्ष हजारों नवयुवकों को ऐसी ट्रेनिंग देकर जिहादी बनाया जा रहा है। पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आई.एस.आई. के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने इस लूट की राशि से रावलपिंडी और इस्लामाबाद में बड़ी-बड़ी कोठियां और फार्म हाउस बना लिए हैं। परन्तु विचित्र बात यह है कि इसकी संतानों ने कभी भी जिहाद का रास्ता नहीं अपनाया।
60 वर्षीय अब्दुल रहीम का कहना है कि माजिद के मुल्ला ने उसेक बेटे को रोजगार देने के बहाने से जिहादी ग्रुप में कुली भर्ती करा दिया लेकिन नियंत्रण रेखा पार करते समय वह भारतीय सेनाओं की गोली का शिकार हो गया। उसने कहा कि स्वार्थीलोग अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए पाकिस्तान की युवा पीढ़ी को मौत के जाल में फंसा रहे हैं। यह जिहाद नहीं, यह तो व्यापार है।
गरीबी ने बनाया जिहादी
जिहादी संस्कृति पर प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि जिहादी प्रवृत्ति के लोग उन स्कूलों की पैदाइश है जिन्हें धार्मिक शिक्षा की मूल जानकारियां तक नहीं होती। एक अन्य कारण यह है कि पाकिस्तान में बेरोजगारी और गरीबी बढ़ रही है। सहफुल रहमान शैफी (जैश-ए-मोहम्मद का प्रसिध्द आतंकवादी) जिसने पाकिस्तान में कई बम धमाके किए थे वह कुरान को जानता तक नहीं था।
सी. कॉम की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात् उसे अच्छी नौकरी नहीं मिल सकी। मजबूर होकर वह किताबों की दुकान पर नौकरी करने लगा लेकिन जब वह जिहादी बना तो उसकी जिंदगी ही बदल गई। मित्रों और अन्य लोगों में उसका मान-सम्मान बढ़ गया क्योंकि वह अल्लाह का सिपाही बन चुका था। आत्मघाती हमलों का माहिर मोहम्मद एजाज कई बार परीक्षा में फेल हो जाने पर जैश-ए-मोहम्मद ने उसके लिए दरवाजे खोले तो उसकी किस्मत ही बदल गई। स्थानीय मौलवी गुलाम अल्लाह ने उसे जिहादी बनने के लिए प्रेरित किया।
सारे जिहादी बेरोजगारी और गरीबों के कारण नहीं बनते। कई घरों में ऐसा वातावरण है जब भी उनके लड़कों ने ईमानदारी से कोई काम करना चाहा उन्हें सफलता नहीं मिली। जफर रहमान ने जैश-ए-मोहम्मद से सम्पर्क किया और उसके दिन फिरने लगे। उल्लेखनीय है उसका छोटा भाई भी इसी लाइन में काम कर रहा था। जफर (5000 रुपये मासिक की नौकरी करने वाला) आज शक्तिशाली व्यक्ति बन बैठा है।
जैश-ए-मोहम्मद ने पहली बार आत्मघाती दस्तों का निर्माण किया और इसका प्रयोग पाकिस्तान में किया। इसका प्रशिक्षण उसने लश्करे-ए-तैयबा से लिया जिसने पहली बार भारतीय कश्मीर में इसका परीक्षण किया था। लश्कर-ए-तैयबा ने 1999 में बारामूला में सेना सुरक्षा बल के दफ्तर पर आत्मघाती हमला करके 13 नौजवानों को मौत के घाट उतारा था। 2015 तक सैकड़ों आत्मघाती हमले जम्मू-कश्मीर की अलग-अलग जगहों पर हो चुके हैं और हजारों लोग मारे जा चुके हैं।
जिहादी साहित्य और मनगढ़ंत कहानियां
रिसर्च रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जिहादी संस्कृति और नए जिहादियों की भर्ती के लिए जिहादी साहित्य भी मुख्य रूप से दोषी है। जिहादी समाचार पत्रों और मैगजीनों में ऐसी-ऐसी कहानियां प्रकाशित की जाती है जो सत्य से कोसों दूर होती है। ऐसी मैगजीनों को जिहादी संगठनों द्वारा ही प्रकाशित किया जाता है। पिछले दिनों एक मुजाहिदीन की कहानी प्रकाशित हुई। एक आतंकी गुट कश्मीर के किसी हिस्से में भारतीय फौज के डर से जा छिपा था। ठंड बहुत थी। आग जलाने का कोई साधन नहीं था। उन्होंने अल्लाह से प्रार्थना की उसी समय स्टोव जल पड़ा। बिना मिट्टी के तेल के स्टोव लगातार काम करता रहा!!! इसी प्रकार वह और उसके साथी 13 दिन ठंड से बचे रहे। यह अल्लाह का करम ही कहा जा सकता है। हम इस्लाम के लिए लड़ रहे हैं हम अल्लाह के सच्चे सिपाही हैं इसीलिए अल्लाह ने हम पर रहम किया। एक अन्य कहानी में कहा गया है कि नियंत्रण रेखा पार करते हुए मेरा सामना भारतीय सेना के नौजवानो से हो गया। मैं भारतीय सैनिकों की गोलियों से बुरी तरह जख्मी हो गया। मेरे बचने की कोई उम्मीद नहीं थी उसी समय अल्लाह की भेजी हुई परियां जा पहुंची और उन्होेंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया। जब वह दो-तीन दिन बाद उठा तो वह अनजान जगह पर था जहां उसके सारे जख्म पूरी तरह ठीक हो चुके थे।
जन्नत की बातें करने वाले आखिर अपने बच्चों और रिश्तेदारों को जन्नत की राह पर क्यों चलने नहीं देते। लश्करे तैयबा के राजनीतिक ग्रुप ने एक पेपर निकाला है जिसका विषय है हम जिहाद क्यों कर रहे हैं। अपने कृत्यों के कई कारण बताए हैं और यह भी कहा है अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मन, इसराइल और भारत इस्लाम के प्रमुख शत्रु हैं। लश्कर-ए-तैयबा क सऊदी अरब से बेपनाह दौलत चंदे के रूप में मिलती है। तथा पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आई.एस.आई. का उसे पूर्ण संरक्षण प्राप्त है। पाकिस्तान के बुध्दिजीवियों का कहना है कि आतंक के विरुध्द युध्द करके शातिर आतंकवादियों को मार करके जीता नहीं जा सकता जब तक कि मदरसों और कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा संस्थानों आतंकियों की पौध तैयार करते रहेंगे। बाहरी तौर पर मजहबी शिक्षा का पाठ पढ़ानेवाले असल में आतंक का पाठ पढ़ा रहे हैं। नफरत के जहर में घुल रहे लोगों के साथ-साथ उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवान भी अब पथभ्रष्ट हो रहे हैं। उनके दिमाग में जहर घोला जा रहा है कि इस्लाम खतरे में है।