
जिज्ञासा, मानव जीवन के विकास का आधार
| | 2016-02-04T10:26:39+05:30
यूं तो मनुष्य जीवन ही जिज्ञासाओं का शांत करने के लिये होता है। मनुष्य के आध्यात्मिक ज्ञान गुरुतत्व...
यूं तो मनुष्य जीवन ही जिज्ञासाओं का शांत करने के लिये होता है। मनुष्य के आध्यात्मिक ज्ञान गुरुतत्व से प्राप्त होता है। गुरुतत्व मनुष्य के भीतर है, जब यह तत्व विस्तार करता है तो ज्ञान की परतें खुलती जाती है। ज्ञान का विस्तार होता है। कई बार व्यक्ति अपने ज्ञान का विस्तार नहीं कर पाता, उसका ज्ञान सुप्तावस्था में पड़ा रहता है। जैसे ही गुरु की दृष्टि उस पर पड़ती है तो ज्ञान का विस्तार होता है। गुरु कोई भी हो सकता है। माता-पिता, भाई, मित्र, बहन जो ज्ञान के विस्तार में सहायता करता है वह गुरु होता है।
मुझे कौन सा कर्म करना है? आदि अनेक प्रश्न उसके सामने खड़े होते हैं। माता-पिता, गुरु, संत, व्यक्ति को सन्मार्ग बताता है। एक गुरु यह चाहता है कि उसका शिष्य उसके विचारों के अनुरूप कार्य करें। शिष्य का जिज्ञासा भाव गुरु के सत्कार्यों में विस्तार करता है। इसलिए गुरु यह चाहता है कि शिष्य जिज्ञासी बनकर सत्कार्यों को बढ़ाए। सत्कार्यों में आने वाली बाधाओं को समझे।
उन सत्कार्यों से होने वाले लाभ को समझे। लाभ अर्थात् आत्मोकर्ष है, समाज कल्याण है। जो जिज्ञासी है, वह गहरे पानी में डूबकर मोती लगता है। एक साधारण व्यक्ति के लिये समुद्र देखना और उसका आनंद उठाना साधारण बात है पर एक जिज्ञासु का आनंद, संतुष्टि उसमें होती है कि वह स्वयं सागर में गोते लगाकर मोती ढूंढ लाए। जिज्ञासु के लिए संसार की हर घटना रहस्यमयी है।