घर आश्वस्ति है। विश्राम का मूल और सुखधाम। मनुष्य श्रम करता है, पीड़ित व्यथित होता है, थकता है टूटता है। अपमान भी सहता है। घर लौटता है। घर ही आश्रय है। आधुनिक समाज ने बड़े-बड़े होटल बनाए हैं। इलेक्ट्रानिक बटन से दरवाजा खुलता है, बटन से पानी के फव्वारे। वातानुकूलन के साथ संगीत। सर्दी में सुखदायी ताप और भयंकर गर्मी में ठंडी हवाएं। महंगे होटल संचालकों का दावा है कि उनके होटल घर जैसे हैं। हम सबके चित्त में घर ही सबसे सुखद आश्रय है। अपने घर की गंध प्यारी होती है। परिजन प्रीति से हहराती भरीपूरी। घर सुवास चिन्ताहरण गंध है। आधुनिक सभ्यता ने बहुत बड़े घर बना लिये हैं। ऐसे दैत्याकार घर साधारण जन मन को आतंकित करते हैं। यहां प्रीति गंध नहीं, परिजन एकात्म नहीं। खंडित मन विखण्डित घर। घर के भीतर सबके अपने घर। सब साथ नहीं बैठते, साथ नहीं रमते। घर के भीतर भी राष्ट्रों जैसी सीमाएं हैं। भारतीय जीवन दृष्टि में घर की श्रध्देय महिमा रही है। जीवन की सभी प्राप्तियों और उपलब्धियों का उल्लास केंद्र रहे हैं घर। टूटे थके मन की पुनर्नवा ऊर्जा देने वाले केंद्र। जहां-जहां सुख और आश्वस्ति वहां-वहां घर की अनुभूति।घर के प्रति ऋषियों की प्रीति
घर असाधारण आश्रय है। कर्म, श्रम और विश्राम का स्थान। ऋग्वेद के ऋषियों की घर प्रीति अन्यत्र संदर्भों में भी छाई हुई है। जहां घर है, वहां द्वार भी होगा ही। घर द्वार की चिन्ता परिवार की चिन्ता मानी जाती है। ऋषि समूची सृष्टि को भी घर की तरह देखते हैं। बताते हैं कि ब्रह्माण्ड के द्वार पूरब दिशा में खुलते हैं, यहां प्रात: प्रकाश में आ जाता है। ब्रह्माण्ड घर भले न हो, हो सकता है कि उसमें द्वार भी न हो लेकिन ऋषि चित्त की घर चेतना ध्यान देने योग्य है। ऋग्वेद के अनुसार विश्वकर्मा या विष्णु ने विश्व बनाया। जैसे बाकी लोग घर बनाते हैं, विष्णु या विश्वकर्मा ने विश्व बना डाला। मूल विषय घर है। इस समाज में घर द्वार की लत मजेदार है। आग्न देव के लिये कहते हैं आग्न अंधकार के द्वार खोलते हैं। ऊषा भी अंधकार के द्वार खोलती हैं। वैदिक समाज की घर प्रीति ऋग्वेद में छाई हुई है। पुरातत्व में इसके साक्ष्य नहीं हैं। हड़प्पा सभ्यता ऋग्वैदिक सभ्यता का विस्तार है। डा.भगवान सिंह ने 'हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य' (खंड 1) में लिखा है आवास के विषय में जिन आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति हुई है वह बेड़ा हो, खुला लम्बा चौड़ा हो, अछिद्र मजबूत हो। राजाओं के निवास के संदर्भ में ध्रुव उत्तम और सहस्त्र द्वार या हजार खंभों वाले घर का उल्लेख हड़प्पा के आवासों से इतना साम्य रखता है कि इससे अधिक की आशा ऋग्वेद से करना दुराग्रह पूर्ण होगा।घर का मुख्य घटक है परम्पर प्रेम। मूर्ति न हो तो विशाल और भव्य मंदिर का क्या अर्थ? घर में दंपति हों, खिलिखिलाते बच्चे हों, भोजन हो, गाय बछड़े हों प्रीति रस से भरे पूरे हो सब जन। तभी कोई भवन घर बनता है। आधुनिक समाज के घर सीमेंट, लोहा और मौरंग गिट्टी के कारण मजबूत हैं लेकिन आंगन में अत्मीयता की दीप गंध नहीं। पारिवारिक सदस्यों में शीलगंध नहीं। सब अपने भविष्य को लेकर तनाव में हैं। बच्चों में ही अपना भविष्य देखने की दृष्टि नहीं। सो मजबूत घर भी दरक चिटक गये हैं। बेघर मजदूर, गरीब किसान अपना घर किसी प्रकार बचाए हुए हैं। ईट गारे की गड़बड़ी से भले ही ऐसे घर कमजोर हों लेकिन घर घटक ध्रुव है। जिस भारत में घर-परिवार की प्रीति का जन्म और विकास हुआ आश्चर्य है कि उसी भारत में घर टूट रहे हैं, घर बिखर रहे हैं। घर छूट रहे हैं। दो फाड़ हो रहे हैं। प्राचीन वैदिक समाज के देवता भी घर वाले गाएं गये थे लेकिन आधुनिक समाज के संचालक और परदेशी सभ्यता के प्रचारक किराए के घरों में हैं। किराए की कोख का विज्ञान लाए हैं। सुना है कि लिव इनके लिये घरों की दरें काफी सस्ती हैं।