
क्या नौकरशाही नेताओं की गुलाम है?
| | 2016-03-03T10:37:53+05:30
हमारे देश की नौकरशाही का चरित्र राजतंत्र के जमाने से गुलामी का रहा है। जिस प्रकार राजा-नवाबों के...
हमारे देश की नौकरशाही का चरित्र राजतंत्र के जमाने से गुलामी का रहा है। जिस प्रकार राजा-नवाबों के जमाने में उनके कर्मचारी आंख मूंदकर उनके हुकूम को बजाते थे और जिनके शब्दकोष में राजा-महाराजाओं के लिए न शब्द नहंीं होता था। वही स्थिति लगभग आज भी देश के नौकरशाहों की है। ब्रिटिश हुकूमत के जमाने में भी इंडियन सिविल सर्विसेस के अफसरान अंग्रेजी हुकूमत के सामने नतमस्तक रहते थे, और लगभग गुलाम जैसा आचरण करते थे।
जो मानसिक गुलाम होते हैं उनकी मानसिकता दो तरफी गुलामी की होती है। वे अपने से ताकतवर के समक्ष नतमस्तक रहते हैं और अपने से कमजोर जनता के प्रति उनका व्यवहार जनता को दबाकर रखने का होता है। आजादी के आंदोलन के दिनों में आंदोलनकारियों को लाठी, गोली और जेल के माध्यम से दमन करने का काम यही नौकरशाही करती थी। आजादी के बाद भी नौकरशाही का चरित्र बदला नहीं है और यहां तक कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षण में जो ज्ञान मंत्र उन्हें सिखाए जाते हैं वे भी जीहजूरी चाटुकारिता और अपने से बड़े अधिकारी को न नहीं कहने केवल हां कहने का पाठ होते हैं। अनेक आईपीएस अधिकारियों ने जिन्होंने अपने सेवाकाल के अनुभव किताबों के रूप में दर्ज किए हैं या कुछ ने कुंठित होकर त्याग-पत्र दिए हैं, के संस्मरण भी इसी की ताईद करते हैं।
दरअसल कानून को तोड़ने की शिक्षा सत्ता और शासन ही देता है जो आम लोगों के मन में यह धारणा बनाता है कि कानून कुछ नहीं होता है केवल ताकत ही सर्वोपरि है। इस प्रक्रिया से समाज कानून का पालन करने की जगह कानून को तोड़ने का प्रयास करने वाला बन जाती है। विगत दिनों महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव श्री परदेशी जो मुख्यमंत्री के साथ एयर इंडिया के विमान से न्यूयार्क यात्रा पर जा रहे थे अपने वीजा संबंधित दस्तावेज घर भूल आए। विमान की सीढ़ियां चढ़ते समय उन्हें ख्याल आया और वे अपने घर से दस्तावेज लेने गए। जिसके परिणाम स्वरूप एयर इंडिया विमान डेढ़ घंटे तक हवाई अड्डे पर रुका रहा, उनका इंतजार होता रहा और उनके आने के बाद विमान रवाना हुआ। चूंकि यात्री विमान ने चढ़ चुके थे अत: उन्हें डेढ़ घंटे तक विमान में इंतजार करना पड़ा।
वैश्वीकरण और दुनिया की बात करने वाले हमारे देश के प्रबुध्द नौकरशाह और सत्ताधीश यह भूल जाते हैं कि सम्पन्न दुनिया अपने-अपने देशों में नियमों का कितना सम्मान करती है। पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्ग्रेट थ्रेचर के बेटे का, लंदन पुलिस ने सीमा से तेज गति से गाड़ी चलाने पर जुर्माना किया था। अभी कुछ समय पूर्व न्यूयार्क पुलिस ने जर्मन चांसलर की गाड़ी गलत पार्क किए जाने पर जुर्माना किया था। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने विमान से उतरकर पंक्ति में लगकर अपना खाने का पैकेट खरीदा।
मुख्यमंत्री के जूते उठाने वाले अधिकारी
यूरोप और अमेरिका में सभ्य समाज और सत्ताधीश अपनी आदत के बतौर नियमों और कानून का पालन करते हैं। परन्तु भारत में या उन एशियाई देशों में, जहां लोग सामंती व्यवस्थाओं के अभ्यस्त हैं तथा उन्होंने लोकतंत्र का भी सामंतीकरण कर दिया है, कानून को तोड़ना बड़े होने का पर्याय माना जाता है। भारत की नौकरशाही ने यह मानसिकता तैयार करने में बड़ा योगदान दिया है। यहां तक कि राजनेताओं के दलों का निर्धारण या दल बदल तक पुलिस के थानेदार और प्रशासनिक अधिकारी करा सकते हैं।
जब मैं समाजवादी पार्टी का महासचिव था, तथा 1994 में सपा की सरकार यूपी में बन गई थी तो एक थानेदार मुझसे मिलने आए थे। उनके साथ 3 विधायक भी थे जो कि सपा की विरोधी पार्टी के थे। उनकी मात्र इतनी ही शर्त थी कि अगर उक्त थानेदार महोदय का स्थानांतरण, उनके बताए स्थान पर हो जाए तो वे तीनों विधायक सपा में शामिल हो जाएंगे। जिस दिन कलेक्टर किसी विधायक को दरवाजे के बाहर खड़ा कर देता है तो उस विधायक का जनता में बाजार मूल्य घट जाता है और उसके समर्थक उसे दल परिवर्तन की सलाह और उसे एक प्रकार से बाध्य करना शुरू कर देते हैं। मलाईदार स्थानों पर तबादले के लिए अधिकारी सत्ताधारी नेताओं और छुटभइयों की चाटुकारिता करते हैं। उन्हें लाभ पहुंचाते हैं, और उन्हें आमजन में ताकतवर बनाते हैं।
अगर तथ्यात्मक अध्ययन किया जाए तो देश के बड़े नौकरशाहों का अधिकांश समय गैर प्रशासनिक कार्यों में जाता है। उनके पास आमजन से मिलने, उनकी समस्याओं को सुनने का वक्त नहीं होता है, लेकिन वे सत्ताधीशों के आगे-पीछे घूमने और स्वागत सत्कार करने में कई-कई दिन लगा देते हैं। उत्तर प्रदेश के एक जिले के एसएसपी का फोटो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के चाचा के जूते उठाते छपा था, और इतना ही नहीं ये जूटा उठाकर मुख्यमंत्री और अधिकारी अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं।
नौकरशाह अमूमन कमरों में बंद रहकर काजगी काम करते हैं या अपने ही भ्रष्टतंत्र के माध्यम से सूचनाएं प्राप्त करते हैं। जनता के अधिकारों के लिए लड़ने वालों को प्रताड़ित करना उनके खिलाफ मुकदमें दर्ज करना और यहां तक कि उन्हें जिला बदर कर आंदोलनों को तोड़ने का प्रयास करना नौकरशाहों का तरीका है। मेरा उद्देश्य आलोचना नहीं बल्कि सुधार है। मैं चाहता हूं कि नौकरशाह अपने तरीकों में बदलाव करें और जनोन्मुखी बनें, इससे उनकी साख भी बढ़ेगी उनके प्रति जन विश्वास पैदा होगा, और लोकतंत्र मजबूत होगा।